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________________ ( ३६५ ) अत्रेदमाकूतम । "रसौ वै सः' इतिश्रुत्या "सर्व रसः" इति श्रुत्या च सर्वरमात्मकत्वं ब्रह्मणो निर्णीतम् । तथा च यस्य रसस्य ये विभावानुभावरूपास्तैः स रसः सम्पद्यते । आतानवितानात्मक सन्तुभिः पटइव अतस्तत्तदात्म्यं रस स्येति सर्वाभेदो निष्प्रत्यूह इति । लीला में घटित सभी पदार्थ ब्रह्म से अभिन्न होने से ब्रह्म के समान एक हैं। पूर्वलीला से, बाद की लीला तक जो भो धर्म हैं वे सब एक दूसरे से संबंधित होने से एक हैं।" रसौ वै सः" श्रुति और “सर्व रसः" श्रुति दोनों ही, ब्रह्म की रसात्मकता का निर्णय करती है। जिस रस के जो विभावानुभाव होते हैं उन्हीं से उस रस की निष्पत्ति होती है । आतानवितानात्मक तन्तुओं से निर्मित होने वाले पट की तरह, विभिन्न विभानुभावों से विभिन्न रसों की निष्पत्ति होती है किन्तु वे सब तादात्म्य संबंध से रस ही हैं, उन में कोई भेद नहीं है। ननु विरुद्ध दिक्कयोरेकजातीयभाववतोभक्त्यातिशयेन युगपदेकजाती यलीलासहित भगवत्प्रादुर्भावे भगवतो व्यापकत्वे नैवं प्रादुर्भावस्योपपन्नत्वे पि लीला पदार्थानांमव्यापकत्वाद्युगपदाविर्भावोनुपपन्नः । भक्तयोः समानत्वाद्भक्तिमार्ग विरोधापाताद विनिगमकाभावाच्चैकत्र मायया प्रदर्शयतीति च न वक्तुयुक्तमिति शंकाप्येताभ्यां निरस्तेति ज्ञेयम् । ब्रह्मणोव्यापकत्वाल्लीलायाश्च तेन सहाभेदात्तथात्वादेकस्मै भक्ताय यथा ब्रह्मणा सह लीला पदार्था आविभवन्ति तथैव तदैवान्यत्रापि भक्त समानदेश आविर्भवन्तीति सर्व सामंजस्यात् । विभिन्न दिशाओं वाले एक जातीय भावों का तो भक्त्यातिशय से, एक साथ एक जातीय लीला के साथ भगवत्प्रादुर्भाव में सामंजस्य सम्भव है किंतु भगवान की अव्यापकता में प्रादुर्भाव के समय उत्पन्न इन लीला पदार्थों की अव्यापक होने से, एक साथ आविर्भाव सम्भव नहीं है (अर्थात् लीला पदार्थ तो लीला तक ही सीमित हैं, व्यापक ब्रह्म के साथ वे कैसे अभिन्न भाव से उपस्थित रह सकते हैं ?) इस संशय का उत्तर देते हैं कि भक्त तो सभी समान होते हैं, भक्तिमार्ग की विरुद्धता का भी कोई प्रमाण नहीं मिलता, तथा परमात्मा एक साथ माया से सब प्रदर्शन करते हैं, ऐसा भी नहीं कह सकते; इन दो बातों के विचार से ही शंका का निराकरण हो जाता है।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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