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________________ ( ३६७ ) हेतुक प्रियत्वादिज्ञानं लीलास्थानां चित्तशुद्धय पेक्षाऽभावान्न संभतीति न तेषामत्रोपसंहारः कार्य इत्यर्थः । उपासक के, प्रियत्व आदि ज्ञान प्रकार के आधार पर प्रियत्व आदि धर्मों का शिरस्त्व आदि रुपों में आनन्दमयाधिकरण में निरूपण किया गया है, लीला में भी इनकी स्थिति हैं अतः प्रियत्व आदि ज्ञान की सत्ता वहाँ भी है इसलिये लीला में भी, स्वरूपोपासक के प्रियत्व आदि धर्मों का उपसंहार करना चाहिए, इस संशयित मत का निराकरण करतेहैं-"प्रियशिरस्त्वाद्यप्राप्तिः" इत्यादि । चित्त शुद्धि तारतम्य के हेतुक प्रियत्वादि ज्ञान की, लीलास्थ धर्मों में चित्त शुद्धि अपेक्षित नहीं है इसलिए भी संभावना नहीं है अतः उसके उपसंहार का प्रश्न ही नहीं उठता । अथवा नन्वानंदमयोपासनामथर्वणोपनिषदुक्त पंचरात्राद्यागमोक्त प्रकारेण कुर्वतः पुरुषरूपे पक्षाधुपसंहारस्य अयुत्क्त्बादानंदमयाधिकरणे तद् रूपस्यैवोक्तत्वात् पुरुष रूपः कथमानन्दमयः ? तथात्वे वा कथं नोक्तोपसंहारः ? अपरंच मोदप्रमोदयोरुपचितानुपचितानन्दरूपयोयुगपत्सत्वेन देशभेदेनापि भिन्नत्वानित्यानन्दकरसे ब्रह्मणि तादृग् रूप कथनं अनुपपन्नम् इति चेत् । शंका करते हैं कि-अथर्वणोयनिषदुक्त आनन्दमयोपसना को, पांचरात्र आदि आगम में कहे गये प्रकार से करने पर, पुरुष रूप में पक्ष आदि रूपों का उपसंहार असंगत होगा, आनन्दमयाधिकरण में उपास्य का पक्षि रूप ही बतलाया गया है ? इसलिए पुरुष रूप कैसे आनन्दमय हो सकता है ? यदि उपास्य का वैसा रूप स्वीकार लें तो उपसंहार करने में क्या आपति है ? दूसरी बात ये है कि-पक्षिरूप में दो पक्षों के रूप में मोद और प्रमोद रूपी उपचित और अनुपचित दोनों आनन्दो की एक साथ स्थिति दिखलाई गई है, देश भेद से भी दोनों भिन्न वस्तु हैं, नित्यानंदैकरस ब्रह्म में, ऐसे रूप की कल्पना ठीक नहीं है। परिहरति-प्रियशिरस्त्वादीति—यद्यथर्वणोपास्यात् प्रियशिरस्त्वादि विशिष्टस्य भेद स्यात् तदा तदप्राप्तिः स्यान्न च तथेति प्रियशिरस्त्वादिकमुपासना मार्गीयस्याप्याथर्वणिकादेरुपसंहार्यमेवेत्यर्थः । चित्तशुद्धितारतम्यहेतुकं प्रियत्वादिज्ञानमिति पक्षे, परोक्षवाद पक्षेऽपि तत्र भेदाभावान्मोदप्रमोदयोनं त्वदुक्तरूपत्वमित्यर्थः । ब्रह्मधर्मा एव भिन्ना इत्युपासनार्थ' तानादाय शिरः
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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