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( ३६१ ) अधिकरण प्रारम्भ करते हैं । संशय करते हैं कि-धर्म क्या भगवान से भिन्न उनके कार्य हैं अथवा ब्रह्म से अभिन्न हैं ? लोक में तो पट रूप आदि कार्यों को ही धर्म कहा जाता है, विभिन्न सूत्रों के समवेत रूप को ही धर्म कहते हैं, परन्तु वह समवेत रूप नित्य हों ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता, यदि स्वाभाविक मानकर उन्हे नित्य माना जाय तो वह क्लिष्ट कल्पना होगी और ब्रह्मपक्ष में 'एकमेवाद्वितीयम्' इस अद्वत श्रुति से विरुद्धता होगी । ब्रह्म धर्मों को प्रपंच की तरह कार्य मानने से, ब्रह्म समस्त कल्पनाओं से रहित हो जायगा ! इस मत पर कहते हैं कि जैसे प्रकाश के आश्रय सूर्य आदि प्रकाश से भिन्न नहीं है, उनको पृथक् स्थिति दीखती भी नहीं एक साथ ही उनकी प्रतीति होती है, अवि च्छिन्न रूप से अपने मूल आधार में ही प्रकाश रहता है । सूर्य भी प्रकाश के बिना कभी नहीं देखा जाता, इससे यही मानना चाहिए कि-वह वस्तु वैसी ही (प्रकाशवान हो) होती है । जैसी सूर्य प्रकाश की स्थिति है 'वैसी ही ब्रह्म और उसके धर्म को भी है। यदि स्वाभाविक धमवत्ता न मानकर ब्रह्म को सर्व विशेष शून्य मानेंगे तो 'अस्य महतो भूतस्य निःश्वसितमेतद् ऋग्वेद 'इत्यादि जो चेतन धम रूपा वेद प्रवृत्ति का उल्लेख हैं, वह निरर्थक सिद्ध होगा। तथा 'अथात् आदेश' इत्यादि में जो, पराभिमत निषेधशेषता का उल्लेख किया गया है, वह भी निरर्थक होगा। इसी प्रकार 'सत्य ज्ञानमनन्तं ब्रह्म 'जो स्वरूपलक्षण श्रुति है उसको तथा 'विज्ञानमानन्दं ब्रह्म' इत्यादि श्रुति की जो सत्यादिपदों की एक वाचकता है, वह भी नहीं होगी। यदि कहें कि हम लक्षणा द्वारा उक्त असंभावनाओं का परिहार कर लेंगे, सो भी संभव नहीं होगा क्योंकिलक्षणा में तो धम की अपेक्षा अनिवार्य होती है । इसलिए यही मानना चाहिए कि वेद, धर्म विशिष्ट ब्रह्म को ही मानते हैं। श्रुति में ब्रह्म को तेज स्वरुप कहा गया है जैसे कि-"तह वा ज्योतिषां ज्योतिः' 'भारूप तस्यमासा सर्व निदं विभाति' इत्यादि । इसमें ज्योति धर्म वाले ब्रह्म का निरूपण किया गया है, इनका ये धम सूर्य के प्रकाश व्यापकता तथा तिरोभाव दशा में उनको दूर से ही व्याप्ति रहती है। जैसे कि सूर्य की धूप दूर से ही लोगो को तप्त करती है वैसे ही परमात्मा का प्रकाश जगत को तेज प्रदान करता है। उनके उस तेज को लोग अनुभव करते हैं, 'वेद भी उनके तेज स्वरूप का वर्णन करते हैं, इसलिए इसमें युक्ति की कोई अपेक्षा नहीं है। ब्रह्म, वेद में जैसा कहा गया है, वैसा ही है, यही सिद्ध होता है ।