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________________ कत्तु शक्यः । इव शब्दो, बहुस्यामिति व्यावृत्यथः । तस्मादुपनिषत्सु सर्व प्रकारोऽविरोधः सिद्धः । भेद स्वीकारने में होने वाली बाधा बतलाते हैं कि वृहदारण्यक के शारीर ब्राह्मण में अभेद का स्पष्ट उल्लेख है, जिसमें भेद का निषेध किया गया है। "मन से ही इसे प्राप्त किया जा सकता है। इस जगत् में कोई विभिन्नता नहीं है जो इसमें विभिन्नता देखता है वह, मत्य प्राप्त करता है" इत्यादि में भेद दृष्टि की निन्दा की गई है। इसलिए भेद नहीं स्वीकार सकते । “नानेव" में जो इव शब्द का प्रयोग किया गया है वह "बहस्याम" पद का व्यावर्तक है। इस प्रकार उपनिषदों में समस्त प्रकारों का अविरोध सिद्ध होता है । अरूपवदेव हि तत्प्रधानत्वात् ॥३॥२॥१४॥ एक देशि मतेन समाधानमाह । कथमत्र संदेहो विरोधो वा? जडजीव धर्माणां विधिनिषेधयोर्जडजीवयोहि जडजीवधर्माः भवन्ति । अन्यत्रतपदिश्यमाना उपासनार्था भवंति । ननूक्तो भेदाभावः, सत्यम . तथापि कार्यकारणांशभावकृतस्य भगवद् विहारार्थं जातस्य भेदस्य निषेद्ध मशक्यत्वात । तस्माद् ब्रह्मणि जडजीव धर्माणां निषेधोयुक्तः । उपचारात्तु सर्वकर्मादयः । विपरीतं किन्नस्यात् ? अत आह अरूपवदेव, रूप्यतेनिरूप्यते व्यपहियते, इति रूपं व्यवहार विषयत्वं, तयुक्त रूपवद् विश्वम् । ब्रह्म तु तद्विलक्षणम कार्यकारणां शांशिनोवलक्षव्यस्य युक्तत्वात् । नन्ववैलक्षण्यमपि युक्तम , कारणत्वादत आह, तत्प्रधानत्वात् । तस्य ब्रह्मणः प्रधानत्वान्मुख्यत्वात् । यत्र हि तत् प्रतिपाद्यते तत्र तस्य मुख्यत्वम् । ब्रह्म प्रतिपादने ब्रह्म धर्माणामेव मुख्यत्वं, नान्य धमांणाम । यथा प्रशासनस्य मुख्यत्वं, तथा सर्वकर्मेति लौकिककर्मानुवादेन भगवत्संबंध स्पष्टमेवामुख्यत्वम । विशिष्टबोधनेऽपि सर्वशब्दस्य प्रसिद्धानुवादकत्वादतिरिक्त कल्पनायां गौरवात् प्रमाणाभावाच्च यथाकथंचिद्दमवत्वेन ज्ञानस्यैवोपयोगाल्लोक धर्मानेवानद्यवैशिष्टय बोधनमुचितम् । अरूपमिति वक्तव्ये अरूपवदिति वचनं, भिन्न धर्माणामेवैवं निर्णयो, न तु प्रशासनवद् भगवद्धर्माणाम । तस्मात् कार्यवत् तद् धर्माणामपि कार्यत्वाद् भगवत्वं न भगवद्धर्मत्वमिति । अब एक देशीय मत से समाधान करते हैं, प्रश्न करते हैं कि परस्पर विरुद्ध विशेषताओं के संबंध में पूरा संदेह है, अथवा ब्रह्म में जडजीव धर्मों की विधि
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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