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________________ ३३४ धर्माधर्म जनक नहीं हो सकता । प्रश्न होता है कि यदि स्वप्न सत्य नहीं हैं तो स्वप्न में देव दर्शन और जो देवाज्ञा होती है क्या वह सत्य है ? उसका उत्तर देते हैं कि-इंद्रादि जीव विशेषों और ब्रह्म दोनों में ऐसा विशिष्ट सामर्थ्य है कि वे स्वप्नादेश करते हैं, समाधि अवस्था की तरह स्वप्न मेंवे हृदय में प्रविष्ट होकर दर्शन आज्ञा आदि देते हैं, उस समय बुद्धि जागती रहती है अत: स्वप्न द्रष्टा जीव प्रत्यक्ष अनुभव करता है। इस प्रकार की जो अनुभूति होती है, वह लौकिक नहीं होती, क्योंकि उनमें इन्द्रियों की संलग्नता नहीं रहती, अपितु आत्मज्योति रूप से अलौकिक प्रतीति होती है । जिस समय भगवदादेश होता है उस समय कभी-कभी संवाद भी होता है। वैसे स्वप्न की स्वतंत्र सत्यता का कोई प्रमाण नहीं मिलता, इससे निश्चित होता है कि स्वप्न प्रपंच मायामात्र ही है। सूचकश्च हि श्रुतेराचक्षते च तदविदः ॥३॥२४॥ ननु तहि जीवसाक्षिकमेकदेशेन किमिति सृजति तत्राह-सूचकः शुभाशुभ फलसूचको भवति स्वप्नः । चकारात् क्वचिदाज्ञाविशेषदानम् । कलिकालादेः प्रत्यक्षे बाधकत्वात् युक्तश्चायमर्थः । प्रातः सूचक फलस्यैव दृष्टत्वात्र तु स्वप्न पदार्थस्य । सूचकत्वे प्रमाणमाह “यदाकर्मसु काम्येषु स्त्रियं स्वप्नेषु पश्यति, समृद्धिं तत्र जानीयात् तस्मिन् स्वप्ननिदर्शनः" इत्यादि श्रुतेः किंच । आचक्षते च तद्विदः, स्वप्नाध्यायविदः तथैवाचक्षते । आरोहणं गोवत्सकुंजराणामित्यादिना । तस्मात् सूचनार्थं जीव प्रदर्शनमिति । प्रश्न होता है कि यदि परमात्मा स्वक्रीडा के लिए स्वप्न सृष्टि करता है, तो उन जीवों के साक्षिक पदार्थों को निरर्थक ही क्यों रचता है ? यह तो एक प्रकार का ब्रह्म के लिए दोष हो गया। इस पर कहते हैं कि स्वप्न शुभाशुभ फल सूचक होते हैं। कभी कभी जीवोत्कर्ष के लिए विशेष आज्ञा भी स्वप्न द्वारा परमात्मा देते हैं। क्योंकि कलिकाल में प्रत्यक्ष कहना नहीं होता । स्वप्नों का सूचक रूप मानना ही ठीक है । प्रातःकाल में देखे गए, सूचकफल सत्य होते हैं, स्वप्नगत पदार्थ सत्य नहीं होते । सूचकत्व का प्रमाणश्रुति में जैसे कि "जब काम्य कर्मों के अनुष्ठान में संलग्न होने पर स्वप्न में स्त्री दिखलाई दे तो, उससे समृद्धि जाननी चाहिए" इत्यादि । स्वप्नाध्याय के ज्ञाता स्वप्नों के फलों को कहा करते हैं । गो, वृक्ष, कुंजर इत्यादि पर चढ़ कर यात्रा आदि स्वप्न का फल भिन्न-भिन्न कहा जाता है। इससे निश्चित होता है कि परमात्मा जो जीव को स्वप्न दिखलाते हैं, वह निरर्थक नहीं है, अपितु भावी सूचक है।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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