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________________ ३१२ अनुमति हो जाती करती है । जीव के नहीं । चन्द्र के लक्षण की बात तो उसके क्षय से ही है "प्रथमपि बान्हि :" इत्यादि श्रुति भी इसकी पुष्टि सोमभाव का तात्पर्य है कि जैसे कि चन्द्र घटता बढ़ता है, वैसे ही जीव भी पुनः पुनः आवागमन को प्राप्त होता हुआ अमरता को प्राप्त करता है । देवता, भगवान के अवयव हैं, इसलिए भोग नहीं करते, इत्यादि भाव अनशन श्रुति में दिखलाये गए हैं। भगवान न भोग करते हुए भी भोग करते हैं, वैसे ही देवताओं के लिए भक्षण की चर्चा ठीक ही है । भक्षण तो गौण बात है, इसलिए जीव की सोमभाव प्राप्ति चिन्तनीय नहीं है । कृतात्ययेऽनुशयवान दृष्टस्मृतिभ्यां यथेतमनेवं च | ३|१|८|| प्रथमाहुतिः सफला विचारिता । द्वितीयां विचारयितुमधिकरणारम्भः । सोमस्यपर्यन्य होमे वृष्टित्वमिति । सोमाद् वृष्टिभावे रूप रसादीनां होनतया प्रतीयमानत्वाद यागस्यावान्तर फलं तत्र भुंक्त इति निश्चितम् । तत्र शंसयः, किं सर्वमेवावान्तर फलं तत्र भुंक्त े, आहोस्वित् अनुशयबान वृष्टिर्भवतीति ? प्रथम आहुति के संबंध में सफल विचार हो गया अब दूसरी आहुति' विचार के लिए अधिकरण का प्रारम्भ करते हैं। सोमका मेघ में होम होने में वृष्टि होती है । सोमभाव प्राप्त होने के बाद वृष्टि भाव को प्राप्त होने तक रूप रस आदि के न रहने से जीव केवल यज्ञ के अवान्तर फल को भोगता है, यह तो निश्चित ही है । अब संशय होता है कि जीव उस अवस्था में समस्त अवान्तर फल को भोग लेता है तब वृष्टि रूप होता है अथवा वृष्टिरूप होने के बाद अवान्तर फल का भोग करता है । सदबासनयाऽग्रिमजन्मनि सदाचार युक्त एव स्यादिति । "आचारहीनं न पुनन्ति वेदा: " इति वाधोपलब्धेः । अतोविचार उचितः । तत्रावान्तरफलस्याव शेषे अवान्तरफलत्व बाधाज्ज्ञानोपयिक शरीरभावादेव सदाचार सिद्ध: प्रयोजना भावाच्च निरनुशय एव वृष्टि भावं प्राप्नोतीत्येवं प्राप्ने । सद् वासना के अनुसार ही अग्रिमजन्म में जीव सदाचार युक्त होता है, यह निश्चित बात है । यदि ऐसा नहीं मानते तो "आचार हीनं न पुनंति वेदा: " श्रुति बाधक होती है इसलिए उक्त विचार ही ठीक है । अवान्तर फल का भोग कर लेने पर ही अवान्तर फल की क्षीणता होगी और तभी ज्ञानोपयोगी शरीर प्राप्त होगा जिससे सदाचार हो सकेगा, इससे निश्चित होता है कि जीव के
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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