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________________ ३११ वित्वात् । तथा सति मोक्ष एव भवेत् । अतो भक्षणमपि गौणम् । तथाहि श्रुतिरेव गौणभावं शब्दस्य बोधयति "अथयोऽन्यां देवतामुपास्ते' इत्यत्र यथा पशु शब्द एव मत्रापि भक्षणं सहक्रीडनं सेवकभावः । चन्द्र तुल्यापदेशाय तथा वचनम् । तथा सति तेषाममरत्वेन तथा स्तुतिः । चन्द्रस्य भक्षणन्तु क्षमादनु मीयते श्रुत्या "प्रथमां पिबते वह्विरित्यादि रूपया। देवानाम भक्षणं भगवदवयवानामेव अशनानशने तस्याविरुद्ध । आधिभौतिकानां देवानामशनमेव, तस्माद भक्षणस्य गौणत्वात् सोमभावे न काचिच्चिन्ता । कुछ दोष का परिहार करते हैं। यदि श्रुति साम्य के आधार पर सोमभावादि की प्राप्ति इष्टादिकारियों की ही मानते है तो सोमभाव में उनके अनिष्ट की बात भी "तद्देवानामन्नं ते देवा भक्षयंति" इत्यादि श्रुति से ज्ञात होती है, "चाब्यायस्व" इत्यादि चंद्रदृष्टान्त वाली समान श्रुति भी उसी की पुष्टि करती है। इनमें देवताओं द्वारा इष्टकर्ताओं के भक्षण की बात कही गई है, वे देवता अपने अन्न को, पर्जन्य रूप से अग्नि में कैसे हवन कर सकते हैं ? पंचाहुति वाली बात नहीं हो सकती। इस संशय का वा शब्द से परिहार करते हैं । कहते हैं कि इष्टकर्ताओं के सोमभाव की बात गौण है और भक्षण की बात भी गौण है । स्वभावतः चन्द्रमा अंगार के समान है, वह आहुति का फल कैसे हो सकता है। सोमभाव की गौणता का निरूपण आगे करेंगे । अभी तो भक्षण की गौणता पर विचार करते हैं। भक्षण की बात तो, अन्नभाव में ही बन सकती है किसी अन्य वस्तु में तो अन्नभाव में तो अन्नभाव हो नहीं सकता। ब्रह्मज्ञान हो जाने पर तो सब में अन्नभाव होना संभव है, उस स्थिति में तो सब कुछ संभव है जैसा कि "तदेवैतत् पश्यन ऋषिर्वाम देवः" इत्यादि वर्णित वामदेव के वृत्तान्त से निश्चित होता है। यह अप्राकृत दृष्टान्त है, प्रकृति में तो ऐसा होना सम्भव नहीं है। क्योंकि प्रकृति में आत्मज्ञान नहीं रहता । अप्राकृति अवस्था में तो मोक्ष ही होता है, चान्द्रमसी आदि गति नहीं होती। इसलिए भक्षण की बात गौण ही है । भक्षण का गौण भाव श्रुति के शब्दों से ही परिलक्षित होता है। जैसे कि "योऽन्यांदेवतामुपास्ते " इत्यादि में पशु शब्द गौण है वैसे ही यहाँ भी भक्षण शब्द गौण है, यहाँ भक्षण शब्द क्रीडत (भोग) अर्थ में प्रयुक्त है [जैसे कि "स्त्रियंभुक्त" में भोगार्थक है] चन्द्र के समान भोग करता है, यही भक्षण का तात्पर्य है। इससे जीव की अमरता दिखलाई गई है, अतएव भक्षण शब्द स्तुति परक है अनिष्ट सूचक
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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