SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५८ तुम्हारा यह विचार भी असंगत है, इस प्रकार भी अव्यवस्था होगी । विचार करना होगा कि पुरुष जो प्रधान को प्रेरणा देता है वह उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति है या प्रधान की इच्छा से वह ऐसा करता है ? स्वतः तो वह प्रेरणा देगा ही क्यों, उसे प्रयोजन ही क्या है ? यदि प्रधान की इच्छा से देता है तो प्रधान के स्वभावानुसार वह दोषपूर्ण ही होगी, जिससे स्वाभाविक अव्यवस्था होगी । फिर प्रकृति से पुरुष का नित्य संबंध होने तथा सृष्टि में विशेष कारण रूप होने से पुरुष का कभी प्रकृति से छुटकारा तो संभव है नहीं । असक्त व्यक्ति के मोक्ष की बात तो कभी मानी नहीं जा सकती । अंगित्वानुपपत्तेश्च | २|२८| प्रकृतिपुरुषयोरंगां गित्वे भवेदप्येवम्, तच्चनोपपद्यते पुरुषस्यांगित्वे ब्रह्मवादप्रवेशो मतहानिश्च । प्रकृतेरं गित्वेत्वनिर्मोक्षः अनेन परिहृतोऽपि मायावादी निर्लज्जानां हृदये भासते । प्रकृति और पुरुष का अंगागीभाव मानने पर भी यही श्रव्यवस्था होगी अतः वह संभव नहीं है । यदि माया को पुरुष का अंगी मानते हैं तो ब्रह्मवाद प्रवेश हो जायेगा और तुम्हारी मत हानि होगी । और यदि पुरुष को माया का अंग मानते हैं तो पुरुष का मोक्ष संभव नहीं है । इस प्रकार परिहार हो जाने पर भी यदि मायावाद का प्राग्रह किया जाय तो वह निर्लज्जता है मोर कुछ नहीं । श्रन्यथानुमितौ च ज्ञशक्तिवियोगात् । २|२|| श्रन्यथा वयं सर्वमनुमिमीमहे । यथा सर्वेदोषाः परिहृताः भवेयुरितिचेत् तथापि पूर्वज्ञानशक्तिर्नास्तीति मंतव्यम्, तथासति बीजस्यंवाभावान्नित्यत्वनिर्मोक्षइति । हम आपकी सब बातें मानलें और आपका मत निर्दोष भी मान लें फिर भी यह तो मानना ही पड़ेगा कि सृष्टि पूर्व में ज्ञान शक्ति नहीं थी ( क्योंकि - प्रकृति पुरुष के संयोग से ही तुमने सब कुछ मान रक्खा है | ) जब ज्ञान शक्ति नहीं होगी तो बीज के प्रभाव से सृष्टि की नित्यता सिद्ध होगी मौर फिर सृष्टि की समाप्ति का प्रश्न ही नहीं उठता ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy