SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 286
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१६ ___ काण्व शाखा के पाठ में तो "अन्नस्यान्तम्" ये वाक्य ही नहीं है, फिर पांच कैसे सिद्ध होंगे? तत्राह-ज्योतिषा संख्या पूर्तिस्तेषाम् । "तस्मादर्वाक् संवत्सर" इति पूर्व पठितो मंत्रा “तत्र तद देवा ज्योतिषां ज्योतिः" इति अन्न स्थाने ज्योति ग्राह्यम् व्याख्यानं पूर्व मेव । तस्मादसिद्धम् तन्मतस्य श्रुतिमूलत्वम् । उक्त प्रश्न का उत्तर देते हैं कि उनकी संख्या की पूत्ति वहाँ पर ज्योति शब्द से की गई है, "तद् देवा ज्योतिषां ज्योतिः" इत्यादि में अन्न के स्थान पर ज्योति का ग्रहण किया गया है, बाकी सब पूर्ववत् व्याख्यान है । इससे भी सांख्य मत की श्रुतिमूलकता प्रसिद्ध होती है । ४ कारणत्वाधिकरणः-- कारणत्वेन चाकाशादिषु यथाव्यपदिष्टोक्तः।१।४।१४॥ श्रुति विप्रतिषेधात् स्मृतिरेव ग्राह्य ति मतं दूरी कर्तुं श्रुतिविप्रतिषेधो नास्तीत्यधिकरणमारभते । तत्र श्रुतौ सृष्टिर्भदा बहवः । क्वचिदाकाशादिका "प्रात्मन आकाशः संभूतः" इति । क्वचित्तेजः प्रभृतिका "तत् तेजोऽसृजत्" इति । क्वचिदन्यथैव-"एतस्माज्जायते प्राणः" इति । “इदं सर्व असृजत" इति च । एवं क्रमव्युत्क्रमानेकविध सृष्टि प्रति पादकत्वात् वस्तुनो द्वै रूप्यासंभवाद्, “ग्रहात्वा अनु प्रजापशवः प्रजायन्त" इतिवत् सृष्टि वाक्या नाम थवा त्वेन ब्रह्म स्वरूप ज्ञानार्थत्वाद ध्यारोपापवाद न्यायेन न वेदांत ब्रह्म कारणत्वं सिद्ध्यति । अतः परिदृश्यमान जगतः कारणन्वेषणेक्रियमाणे वाह्याबाह्यमत भेदेषु सत्सु कपिलस्य भगवज्ज्ञातांशावतार त्वात् तन्मत प्रकारेणैव जगद् व्यवस्थोचितेत्येवं प्राप्ते । श्रति वाक्यों में परस्पर मत भेद होने से सांख्य मत ही ग्राह है, इस मत को निराकृत करने के लिए, भूतियों में कोई विरोध नहीं है, ऐसा सिद्ध करने के लिए अधिकरण का प्रारंभ करते हैं । कहते हैं कि---श्रुति में सृष्टि के विभिन्न प्रकार बतलाये गये हैं, कहीं तो "आत्मनः आकाशः" कह कर प्राकाशादि की सृष्टि कही गई है, तो
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy