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________________ २२० कहीं "तत्तेजऽसृजत" कह कर तेज आदि की सृष्टि का उल्लेख है. और कहीं कहीं "एतस्माज्जा-यते प्राणः" इदं सर्वमसृजत् इत्यादि में अन्य प्रकार की सृष्टि का उल्लेख है । इस प्रकार आग पीछे अनेक प्रकार की सृष्टि का प्रतिपादन किया गया है। तो वस्तु के दो रूप तो हो नहीं सकते । यदि "ग्रहात्वा अनु प्रजपशवः" इत्यादि वाक्य की तरह सृष्टिवाक्यों का अर्थवाद मात्र मान लें तो, वे सारे वाक्य ब्रह्म स्वरूप ज्ञान कराने वाले हैं, उनमें अध्यारोपापवाद न्याय मानना होगा, ऐसा मानने से वेदांत से ब्रह्म कारणता नहीं सिद्ध हो सकेगी। इसलिए-दृश्य जगत में कारण को खोजने पर वाह्म और अबाह्म अनेक मत भेदों के उपस्थित होने पर, भगवान के ज्ञानांशावतार कपिल के मतानुसार ही जगद् की व्यवस्था मानना उचित होगा । ऐसा मत उपस्थित किया जाता है। उच्यते, न सृष्टि भेदेषु ब्रह्मणः कारणत्वे विप्रतिपत्तिः । सर्व प्रकारेषु तस्यैव कारणत्वोक्त: । प्राकाशादिषु कारणत्वेन ब्रह्म यथा व्यपदिष्ट मेवैकत्र, अन्यत्रापितदेवकारणत्वे नोक्तम् । “न तस्य कार्य करणं च विद्यते" इत्यादि निराकरणन्तु लौकिक कर्तुत्व निषेधपरम् । तस्यैव प्रतीतेः । सर्व वलक्षण्यार्थं वैदिकानामबाधिताथै क वाक्यत्वस्याभिप्रेतत्वा दिति चकारार्थः। कार्य प्रकारे भेदस्तु माहात्म्य ज्ञापको न तु बाधकः । बहुधा कृति सामर्थ्य लोकेऽपि माहात्म्य सूचकमिति । तस्मान्न श्रुति विप्रतिषेधात् स्मृति परिग्रह इति सिद्धम् । ___ उक्त मत पर कहते हैं कि-सृष्टि वाक्यों में भेद नहीं है, ब्रह्म के कारणत्व में भी कोई अड़चन नहीं है । हर प्रकार से ब्रह्म की ही कारणता बतलाई गई है। आकाश आदि में जैसे ब्रह्म को कारण बतलाया गया है, वैसे ही अन्यत्र भी उन्हें ही कारण बतलाया गया हैं। "उसमें कार्य पौर कारण नहीं है" अतः उसकी अलौकिक कारणता तो माननी ही होगी। सब कुछ बिलक्षण होते हुए भी परमात्म्य होने से एक है इसी सिद्धान्त से सृष्टि परक विभिन्न वाक्यों की एकता है कार्य के प्रकार में जो भेद है वह तो भगवान् के माहाम्य का ज्ञापक है, बाधक नहीं है । अनेक वस्तुओं के निर्माण सामर्थ्य को तो लोक में भी माहात्म्य सूचक ही माना जाता है। इससे निश्चित होता है कि-श्रुतियों में कोई मत भेद नहीं है। सांख्य स्मृति की स्वीकृति नहीं हो सकती।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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