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वाक्य का संबंध जोड़ कर अर्थ करना उचित है ? उक्त प्रकरण में शरीर का रथ रूपक देते हुए जो शरीर इन्द्रिय प्रादि का विवेचन किया गया है, उसका ही भाव इस वाक्य में मानना संगत होगा । अन्यथा वास्तवित्रः उद्देश्य और वास्तविक अर्थ का विपर्यय हो जायगा ।
"जीव प्रकरणं ह्येतन्मुक्तयुपायोऽस्य रूप्यते । योग्यं शरीरमारुह्य गच्छेदिति हरेः पदम ! |
तत्र जीवस्य ब्रह्मप्राप्तो मुख्यंसाधनं शरीरम् स रथः । सर्वसामग्नी सहितपराधीयानत्वात् । रथस्तु हयाधीनः, हयाश्च स्वबुद्धि अधीनाः, सा च प्रग्रहाघीना, स च सारथ्यधीनः, स च स्वबुद्ध्यधीनः सा चामार्गाधीना, सा च प्राप्याधीन इति । एवं ज्ञात्त्रा युक्त सामग्रीकस्तद्देशं प्राप्नोति । तत्रेन्द्रियाणामात्मा विषयः तेच मनसः सम्यक्त्वेन भावितास्तथा भवति । विरक्तेन्द्रियाणामतथात्वात् । बुद्धेरात्मा विज्ञानम् । तद्ब्रह्म विषयकं महद् भवति । ततः परमव्यक्तं न प्रकटं भगवत्कृपयैव सा तु भगवद धीनान साधनान्तराधीना । स च भगवान् स्वाधीन इति । एवमेवार्थ स्तस्योचितः । किं च दर्शयति स्वयमेवेममर्थन् । " एषु सर्वेषु भूतेषु गूढोत्मा न प्रकाशते, दृश्यते त्वन्यया बुद्धया सूक्ष्मया सूक्ष्मदर्शिभि" इति । सूक्ष्मया उपनिषदनुसारिण्या बुद्ध्या, भगवद्ज्ञाने हि तत्प्राप्तिरिति । चकारात् " ततो मां तत्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्" इति स्मृतिगृहीता । यस्मात् साधनोपदेशान्न सांख्यमतमिह विवक्षितमिति ।
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यह जीव संबंधी प्रकरण है, इसमें मुक्ति के उपाय का निरूपण किया गया है । मोक्षोपयोगी शरीर पर श्रारूढ़ हो कर जीव, प्रभु चरणों को प्राप्त करता है, यही प्रकरण का वयं विषय है । ब्रह्म प्राप्ति में जीव का शरीर ही मुख्य साधन है, वही रथ है जो कि समस्त सामग्री सहित स्वच्छन्द है । रथ घोड़ों के अधीन, घोड़े अपनी बुद्धि के प्रधीन बुद्धि लगाम के अधीन, लगाम सारथी के अधीन, सारथी अपनी बुद्धि के अधीन, बुद्धि मर्म के अधीन, मार्ग प्राप्तव्य स्थल के अधीन होता है, ऐसा समझ कर ही समस्त सामग्रियों सहित प्राप्तव्य स्थान की प्राप्ति कर सकता है । श्रात्मा, विषयों को इन्द्रियों के द्वारा मन के सहयोग से प्राप्त करता है, प्राप्तव्य स्थान के लिए भी उसे मन से भली भाँति संयमित कर इन्द्रियो का विनियोग