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________________ २०५ a से उसके विषय श्रेष्ठ हैं, विषयों से मन श्रेष्ठ है, मन से बुद्धि श्रेष्ठ है, बुद्धि से श्रेष्ठ महान् आत्मा है, महान् से अव्यक्त श्रेष्ठ है, अव्यक्त से श्रेष्ठ पुरुष है, नुरुष से श्रेष्ठ कोई नहीं है, वही परा काष्ठा और परागति है " इत्यादि, इस पर सांख्य वादियों का कथन से कि-इसमें अहंकार से महान् महत्तत्त्व, उससे महान अव्यक्त प्रकृति, उसमें महान् पुरुष बतलाया गया है। अहंकार आदि पदार्थ ब्रह्मवाद में नहीं होते । ऐसे ही सांख्य मत पदार्थों के वर्णनों के, प्रकृतिवाद वैदिक सिद्ध होता है । शब्द साम्यमात्रेण न त मतं सिद्यति । संदिग्धानां पदार्थानां पौर्वाचर्येण निर्णयः । नहि संदिग्धवाक्येन सर्वव्याकुलतोचिता ।। अत्र हि पूर्वम्-'प्रात्मानंरथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु । बुद्धि तु सारथिं विद्धि मनः प्रग्रहमेव च ॥ इन्द्रियाणिहयानाहु विषयांस्वेषु गोचरान् । अात्मेन्द्रिय मनोयुक्त भोक्तेत्याहुर्मनीषिणः ॥" तदनु चत्वारि वाक्यानि “यस्त्वविद्यावान्" इत्यादि, तदन्विन्द्रियेभ्यः परा इति । तत्रपूर्व संबंध एवार्थ उचितः। तमाह-शरीर रूपक विन्यगृहीतेः । शरीरेण रूप्यन्ते ये शरीरेन्द्रियादयस्ते विन्यस्ता यत्र रूपक भावेन रथादिषु तेषामेवात्र गृहीतिग्रहणम् अन्यथा प्रकृतहानाप्रकृत परिग्रहापत्तिः - शब्द साम्य मात्र से सांख्य मत वैदिक नहीं कहा जा सकता, संदिग्ध विषय पर पौर्वापर्य वाक्यों की संगति बैठा कर ही निर्णय करना चाहिए, संदिग्ध वाक्य के आधार पर पूरे विषय को गड़बड़ करना उचित नहीं है । जिस वावय को सांख्य स्व सम्मत बतलाते हैं उसके पूर्व का वाक्य इस प्रकार है---'आत्मा को रथी, शरीर को रथ, बुद्धि को सारथी, मन को बागडोर, इन्द्रियों को घोड़े तथा उनके विषयों को उन' घोड़ों का मार्ग जानो । पारमा, इन्द्रिय मन आदि से भोग करता है ऐसा मनीषियों का, मत है।" इस वाक्य के बाद “यस्त्वविद्यावान्" इत्यादि चार वाक्य हैं, उसके बाद “इन्द्रियेभ्यः परा" इत्यादि वाक्य है । पूर्व वाक्यों से ही इस
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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