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________________ ६४ योगी, भगवद् विभूतियों से युक्त संघात् को प्राप्त करता है, देह-इंद्रियप्राण-अंतःकरण सहित जीवात्मा ही संघात् है, स्थूल शरीर पहला अन्नमय विभूति रूप है, दूसरा प्राणमय और तीसरा मनोमय है, समस्त इंद्रियों की नियामक तथा सभी से सम्बद्ध अंतःकरण में स्थित, इन्द्रियों का भी अंतः करण रूप है। जीव तत्त्वात्मक चौथा रूप है जिसकी गुहा में भगवद्धाम परम व्योम का प्राकट्य होता है उसी से पूर्णानंदात्मक पुरुषोत्तम स्वरूप को फल रूप से प्राप्त कर उस परमात्मा के साथ वाङमनसातीत कामनाओं के आनन्द की अनुभूति करते हुए उसी के समान हो जाता है, यही तात्पर्य वाक्यों की पर्यालोचना से ज्ञात होता है। अथेदं विचार्यते, पुरश्चक्रे द्विपद इति श्रु ती वस्तुतस्तु पुरुष एव, परन्तु पुरः सम्बन्धी सन् पक्षी भूत्वा पुर प्राविशदिति निरूपितम् प्रकृतेचान्नमयादयस्तथैवोक्ताः । एवं सत्येकस्यां पुरि बहूनां तेषां प्रवे शोन वक्तुमुचितः । प्रयोजनाभावादिति एकैकस्यां पुरितथा वाच्यः तत्र कीदृश्यांतस्यां क्स्य प्रवेश इति विचार्यमाणे प्राकृतत्वंब्रह्मत्वयोरविशेषाद् विनिगमकाभावात् सर्वेषां सर्वत्र प्रवेशोऽप्रवेशो वा भवेदिति चेत् । ___ कोई इस प्रसंग पर ऐसा विचार प्रस्तुत करते हैं कि-"पुरश्चके द्विपदः" श्रुति में वस्तुतः पुरुष का ही वर्णन है, पुर सम्बन्धी होने से वह पश्ची होकर पुर में प्रवेश करता है, ऐसा निरूपण किया गया है अन्नमय आदि का भी वैसा ही वर्णन किया गया है। एक शरीर में उन अनेकों का प्रवेश कहना उचित नहीं है, प्रयोजन के प्रभाव से ही ऐसा कह सकते हैं । कैसे किसमें किसका प्रवेश होता है, ऐसा विचारने पर समझ में आता है कि-यहाँ प्राकृतत्त्व और ब्रह्मत्व में किसी एक की विशेषतः बतलाने वाला कोई संकेत तो मिलता नहीं, इसलिए सबका, प्रवेश अप्रवेश दोनों हो सकता है। ...सिद्धान्त :-अचेदं प्रतिभाति" अस्माल्लोकात् प्रत्य" इति वाक्ये इदं शब्द प्रयोगात् प्राकृतगुणमयं प्रपंचमतिक्रम्यगुणातीतं प्रपंचं साक्षाल्लीलोपयोगिनं प्राप्नोति इत्यवगम्यते ।, तत्प्राप्त्य : भगवद्भावे सम्पनपूर्व मगवद् विस्हभावेनातितीवत्वेन सर्वोपमदिनाः शरीरेन्द्रिवप्राणान्तः करणाति
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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