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________________ यदि कहो कि उपसंक्रमण ही अतिक्रमण है इसलिए उक्त बात नहीं है ; आश्चर्य है, आपकी मति में ही ऐसे अर्थों का चमत्कार हो सकता है। प्रायः संक्रमण शब्द सब जगह प्राप्त्यर्थक ही सुना जाता है, जैसे कि मकर आदि राशियों को प्राप्त करने पर कहा जाता है कि सूर्य उक्त राशि में संक्रमण कर रहा है । सूर्य का संक्रमण कोई परम मुक्ति अर्थ का द्योतक नहीं है, जैसा कि मुक्ति का उल्लेख "अस्माल्लोकात् प्रेत्य" इत्यादि में है । पुरुषोत्तमानन्द का अनुभव होने पर अनुभवैकगम्य यह मन और वाणी का विषय नहीं है । ऐसे अनुभवी जीव, लोक वेद काल आदि से भयभीत नहीं होते, यही बात “यतो वाचः" आदि श्रुति में कही गयी है। यदि ऐसा न होता तो मन से अगम्य बतलाकर फिर “विद्वान्" ऐसा विशेषण क्यों देते ? . एवं एति "सोऽश्नुते सर्वान् कामान् सह ब्रह्मणा विपश्चिता" इत्युचि यत् फलमुक्त तदेवान्ते विवृतमिति ज्ञायते, अन्यथा “अस्माल्लोकात् प्रेत्य" इति उक्तत्वाद्दे हाभावेन भयानुपस्थितया तनिषेधासंभवः । कामभोगासंभवश्च अत एव सामानाधिकरण्यमनुक्तवा आनंदं ब्रह्मरण इत्युक्तम्, एतेन लौकिक पूर्वदेहं त्यक्तवा साक्षाद्भगवद्भजनोपयोगिनं भगवद् विभूत्यात्मकं संघातं प्राप्नोत्यादी, तथाहि, देहेन्द्रियप्राणान्तः करण जीवात्मको हि संघातः । तत्र स्थूलं शरीरमाद्य विभूतिरूपम् । “द्वितीयं स्पष्टम्, तृतीयम् सर्वेन्द्रिय संबंधित्वेनेन्द्रियरूपत्वेन चान्तःकरणात्मकत्वेन चेन्द्रियन्तिः करणरूपम् । तुरीयं जीवतत्त्वात्मकं यत्र गुहायां भगवतरणेन परमव्योभाविभविस्ततः पूर्णानंदात्मकं पुरुषोत्तम स्वरूपं प्राप्य उक्त ऋगर्थ रीत्यातेनसह सर्वकामाशन मेव मनोवाग् विषयानन्द वेदनं तद्वान् भवतीति वाक्य कवाक्यतयाऽवगम्यते। ___"सोऽश्नुते सर्वान्" इत्यादि ऋचा में जिस फल का उल्लेख है, उसी का अन्त में विस्तार किया गया है, अन्यथा “अस्माल्लोकात् प्रत्य" इत्यादि से किए गए भय के निषेध का प्रश्न ही नहीं था और न कामोपभोग आदि - का होना ही सम्भव था । इस लिए ब्रह्म का सामान्य रूप से वर्णन न करके आनंदं ब्रह्मणः" ऐसा विशेषोल्लेख किया गया है। इस प्रकरण से ज्ञात होता है कि जीवात्मा, लौकिक पूर्व देह से पृथक् होकर, भगवद्भजनोप
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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