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________________ ६२ “स यश्चायं पुरुषे यश्चासावादित्ये स एक" इति वाक्यब्रह्मविदि "पुरुष आदित्ये च तदेवाक्षरं ब्रह्म प्रतिष्ठितम्" इति तदानन्दोऽपि तथैवेति तयोरानन्दयोरैक्यम् । एवंरूपं ब्रह्म ति यो वेद तस्य क्रमेणान्नमयादि प्राप्तिमुक्त वा अन्ते वदत्येतमानन्दमयमात्मानमुपसंक्रामतीति । एवं सत्युपक्रमे परप्राप्तेः फलत्वेनोक्त रुपसंहारेऽपि तथैव भवितव्यत्वादानन्दमयप्राप्तेरेवान्ते फलत्वेनोक्त स्तदुत्तरमन्यस्यानुक्ते रानन्दमय एव परः ।। यह नहीं कह सकते कि उक्त प्रकरण में आध्यात्मिक बातों का ही निरूपण है। वस्तुतः आध्यात्मिक रीति से अन्त में आधिदैविक का ही निरूपण किया गया है। भार्गव विद्या में भी अन्नमयादि ज्ञान हो जाने के बाद भी पुनः ब्रह्म जिज्ञासा की गयी, आनन्दमय ज्ञान हो जाने के बाद फिर भृगु ने ब्रह्म जिज्ञासा नहीं की। भृगु की प्राध्यामिक ज्ञान की प्रवृत्ति नहीं थी अपितु ब्रह्म ज्ञान की ही थी, "अधीहि भगवो ब्रह्म" इस प्रश्न से यह बात स्पष्ट हो जाती है। ___ "ब्रह्मविदाप्नोति परम्" इत्यादि उपक्रम के अंत में ज्ञेय प्रानंद तत्त्व पर विचार करके "यश्चाय' पुरुषे" इत्यादि में ब्रह्मविद पुरुष और आदित्य में एक ही अक्षर ब्रह्म की प्रतिष्ठा बतलाकर "तदानंदोऽपि तथैव". इत्यादि से उन दोनों के आनंदों की एकता बतलायी गयी है । "ब्रह्म ऐसा है" इत्यादि . ज्ञाता को क्रम से अन्नमयादि की प्राप्ति तलाकर अंत में आनंदमय के उल्लेख से उपसंहार करते हैं । जैसा उपक्रम में पर प्राप्ति का फलरूप से उल्लेख है, उपसंहार में भी वैसे ही निष्कर्ष रूप से अंततोगत्वा प्रानंदमय ही फल रूप से प्राप्त होता है यह बताया गया है । उसके बाद किसी अन्य का उल्लेख नहीं है इससे सिद्ध होता है कि प्रानंदमय ही परतत्त्व है । ननूपसंक्रमणं ह्यतिक्रमणमतो न तथेति चेत् हन्तवमतिकान्तशब्दार्था त्वन्मतिर्भाति, यतः संक्रमण शब्दः प्राप्त्यर्थकः सर्वत्र श्रूयते, अत एव रवेर्मकरादि राशिप्राप्तौ तत्तत्संक्रमणमित्युच्यते । नचेयं न परममुक्तिः, अस्माल्लोकात् प्रेत्येति पूर्वमुक्तेः । अत एव पुरुषोत्तमानंदानुभवे सति अनुभवैकगम्योऽयमानंदो न मनोवागविषय इति ज्ञात्वा लोकवेदकालादिम्योऽपि न विभेतीति यतो वाच इति श्लोकेनोक्तवती । अन्यथा आनंदे मनसोऽप्यगम्यत्वमुक्त वा विद्वान्
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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