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________________ नष्टान्ये वस्युः यदि तत्तद्वं ब्रह्म तेषु-तेषु न प्रविष्टं स्यात्, जीवस्य च ब्रह्मण्येव लयेन लीलानुरसानुभवेन नाश एव सः । तथा च तत्तद् रूपं ब्रह्म तेषु-तेषु स्थित मिति न तेषां नाशः, जीवे त्वानंदमयः पुरुषोत्तमः प्रविशतीति रसात्मकत्वादानन्दात्मकमेव विरहभावरसाब्धिमनुभूय पश्चात् प्रादुर्भूतं प्रभुस्वरूपं प्राप्य, न बिभेति कुतश्चनेति वाक्येन लोकात् तद्भावमुक्त वा "एतं ह वाव न तपति किमहं साधु नाकरवं किमहं पापमकरवमिति वाक्यर्वेदाद् भयाभाव उच्यते । "अस्माल्लोकात् प्रत्य" वाक्य में किए गए इदं शब्द के प्रयोग से प्रपंच को अतिक्रमण कर, साक्षात् लीलोपयोगी गुणातीत प्रपंच को प्राप्त करना ज्ञात होता है । उस प्राप्ति में, भगवद्भाव से सम्पन्न होने पर प्राप्ति के पूर्व अन्नमय आदि रूप वाले ब्रह्म का यदि उन उन वस्तुओं में प्रवेश न हो तो, समस्त' वासनाओं को भस्म करने वाले अति तीव्र भगवद् विरह भाव से शरीर इन्द्रिय अन्तःकरण आदि समस्त नष्ट ही हो जाय। तथा जीव का यदि ब्रह्म में ही लय हो जाय तो, उसे लीलारस की अनुभूति होगी ही नहीं, अतः वह नष्ट ही है । यदि यह मान लेते हैं कि अन्नमय आदि रूप ब्रह्म उन उन वस्तुओं में स्थित है तो उन वस्तुओं का नाश सम्भव नहीं है । तत्त्व तो ये है कि-जीव में आनन्दमय पुरुषोत्तम का प्रवेश होता है, वह रसात्मक आनन्दात्मक हो जाता है, उस विप्रलम्भ' रस समुद्र का अवगाहन कर, उससे आविर्भूत प्रभुस्वरूप को प्राप्त कर लौकिक भयों से जीव मुक्त हो जाता है । यही बात “न विभेति कुतश्चन" से बतलाकर "एतं ह वाव न तंपति" इत्यादि से तात्त्विक ज्ञान हो जाने पर भय के अभाव की बात पुष्ट की गई है। शरीर प्राणमनोऽन्तःकरण जीवात्मनां शरीरत्वं वाजसनेपिशाखायामन्तर्यामि ब्राह्मणे पठ्यते । " यस्य सर्वाणि भूतानि शरीरं यस्य प्राणः शरीरं यास्य वाक् शरीरं यस्य चक्ष : शरीरं यस्य श्रोत्रं शरीरं यस्य मनः शरीरं यस्य त्वक्छरीरमित्यादेरन्ते यस्यात्मा शरीरम्" इति । अत्र पूर्वोक्त निर्गुण देहानां भगवच्चरणरेणुजत्वेन भूतरूपत्वात् ब्रह्मशरीरत्वम् । तत्रान्नमयतत्प्रवेशेन तत् स्थितिः प्राणेष्वपि तथा, ज्ञानेन्द्रियेषु विज्ञानमय प्रवेशात ताथात्वम्, जीके त्वानंदमयः प्रविशतीति तथात्वम् अत्तो युक्तं पश्चिस्वक थनम् ।
SR No.010491
Book TitleShrimad Vallabh Vedanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVallabhacharya
PublisherNimbarkacharya Pith Prayag
Publication Year1980
Total Pages734
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith, Hinduism, R000, & R001
File Size57 MB
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