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(४५ ) दृष्टांतोंसे कार्य साधक न होनेसे यथा दृष्टांत एक मिथ्यामति शाहूकार के घर सम्यक्ती की बेटी व्याही आई वह कुछक नौतत्त्व का ज्ञान पढ़ी हुई पंडिता थी और सामायिक आदि नियमों में भी प्रवीणथी तो उसकी सास उसे देवघर ( मांदर ) को लेचली तब वहां देहरे के द्वारे पाषाण के शेर बने हुयेथे उन्हें देखके वह बहू सालुके समझानेके लिये मूछी होगिरपड़ी तब सासुने जल्दी से उठाके छातीसे लगाली और कहा कि तू क्यों कांपती है बहु घबराती हुई बोली यह शेर खालेंगे तब सासु बोली ओ मूर्खे यह तो पत्थरहै शेरका आकार किया हुया है यह नहीं खा सक्ते इनसे मत डर तब अगाड़ी चोंकमें एक पत्थरकी गौ बनी हुई पास बछा बना हुआ तब वहां दूध दोहने लगी तो सासु