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( ४४ ) राग रंग क्या आखों सेती देखे नाहीं । नाच नृत्य क्या ताक थइया ताक थइया ताकथइया क्याइकेन्द्री आगे पंचेन्द्री नाचे यह तमासा क्या १ नासिका के स्वर चाले नाहीं धूप दीप क्या मुखमें जिव्हा हाले नाहीं भोग पान क्या ताक थइया २ परम त्यागी परम बैरागी हार शृंगार क्या आगमचारी पवन विहारी ताले जिंदे क्या ताकथइया ३ साधु श्रावक पूजी नाही देवरीस क्या जीत विहारी कुल आचारी धर्मरीत क्या ताक ४ इति ॥
(५) पूर्व पक्षी - तुम मूर्तिको किस कारण नहीं मानते हो ||
उत्तर पक्षी - लो भला शिरोशिर पड़े खड़का किधर होय मूर्ति को तो हम मूर्ति मानते हैं परंतु मूर्ति का पूजन नहीं मानते हैं पूर्वोक्त