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( १७० ) अलग करतो हाथ मुंहकेअगाड़ी देलेंपरंतुउघाड़े मुखन रहें (नवोले) और वल्लभविजयनाभेवाले ६प्रश्नोंमें १म,प्रश्न में लिखता हैकि दिन रात मुंह बन्धा रहे वा खुला रहे इति इससेयहसिद्ध हुआ है कि इसके शास्त्र में दिन रात दोनोंमें से एक में मुंह बांधना लिखा होगा परन्तु मुंह वांधते नहीं महुर्तमात्र भी क्योंकि धन विजय पूर्वोक्त चतुर्थ स्तुति निर्णय शंकोद्धारी प्रथम परिच्छेद पृष्ट४ पंक्तिमी में लिखता है कि आत्मा रामजी श्रीसोरठ देशने अनार्य कहवानो तथा मुखपत्ती व्याख्यान वेलाए बांधवी सारीछे (अच्छीहै) पण कारण थी बांधता नथी एहवा छलनां वचन बोली अभीनिवेश मिथ्यातनाउदथ केवल भोला लोकोने फंदमानाखवा नोपंथ चला व्योछे पृष्ट ५ पंक्ति नीचे २में संवत्