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( १६२ ) धारी रहे हैं कई काथी ( कत्थरंग) वस्त्र धारी रहे हैं मनमानापंथजो हुआ । औरआत्मारामजी पहिले सनातन पूर्वोक्त ढूंढकमतका श्वेतांबरी साधुथा जब सूत्रोक्तक्रियानासधाई और रेलमें चढ़ने को और दुशाले धुस्से ओढ़ने को दूर २ देशान्तरों से मोल दार औषधियों (याकृतियों) की डब्बियें मंगाकर खानेको विलटियां कराके मालअसवाव रेलों में मंगा लेने को इत्यादिकों को दिलचाहा तो ढूढक मत को छोड़ गुजरात में जाके संवत् १९३२/३३ में पहिलेतो कथ रंगे वस्त्र धारेपीछे पीले करने शुरु किये ।
तृतीय वल्लभविजय अपनी वनाई गप्य दीपिका संवत १९४८ की छपी में पृष्ट १४पंक्ति १५ में लिखता है कि १७०० साल अर्थात् विक्रमी सवत् १७०० के लग भग श्री सत्य गणि विजय