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( १२८ ) पैर मारनेसे क्या मंदिर मूर्ति पूजा जैन सूत्रों में सिद्ध होजाय गी, और क्या उक्त पाठ आदिक ओस की बूंदे टटोल २ के मंदिर पूजाके आरंभ की सिद्धि के आसा रूपी कुम्भको भर सकोगे, अपितु नहीं क्योंकि पूर्वोक्त गणधर आचार्य आगम ज्ञानी यदि मूर्ति पूजा को धर्म का मूल जानते तो क्या ऐसे भ्रम जनक शब्द लिखते और मंदिर मूर्ति पूजा का विस्तार लिखने में ही कलम खेंचते,परन्तु भगवान्का उपदेश ही नहीं मंदिर पूजादि मिथ्यारंभ का तो लिखते कहां से क्योंकि देखो सूत्र उत्राध्ययन अध्ययन २९ में ७३ बोलों का फल गौतम जीने तप संयम के विषय में पूछे हैं, और भगवंतजीने श्रीमुखसे उत्तर फरमाये हैं और निशीथादि में साधु को बहुत प्रकार के व्यवहार वस्त्र पात्र