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( १२७ ) संसार खाते में कुछ और होता है तुम्हारे ही ग्रंथों में २४ भगवान् के शाशन यक्ष यक्षनी लिखे हैं उन्हें कौन पूजता है इत्यर्थः यदि तुम बलिकर्म काअर्थ देवपूजा करोगे तोजहांउवाइ जीसूत्रमें कौनक राजा तथा कल्प में सिद्धार्थ राजाकी स्नान विधिका संपूर्ण कथन आयाहै, वहांवलिकर्म पाठ नहीं है और जहां रायप्रश्नी में कठियारा अरणी की लकड़ी वालेने वन में स्नान किया जिस की तेल मलने आदिक की विधि नहीं खोली है,वहां वलि कर्म पाठ लिखा है, अब समझने की बात है, कि उस कठियारा पोमरने तो घरदेव की वहां उजाड़ में पूजा करी जहां घर ना घर देव और उन उक्त उत्तम राजायों की देव पूजा उड़ गई, जो वहां कय वलि कम्मी पाठ ही नहीं,अरे भोले ऐसे हाथ