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( १२८ ) उपाश्रय आदि का लेना भोगना आहार पानी लेना देना बलिकि दिशा फिर के ऐसे हाथ पछने धोने आदिक की विधि लिखदी है विधि रहित का दंड लिखदिया है परन्तु मूर्ति पूजाका न फल लिखा है न विधि लिखी है न ना,पूजने का दंड लिखा है, ___ (२३) पूर्वपक्षी-ग्रंथों में तो उक्तपूजादि के सर्व विस्तार लिखे हैं
उत्तरपक्षी-हम ग्रथों के गपौड़े नहीं मानते हैं हां जो सूत्र से मिलती वात हो उसे मान भी लेते हैं परन्तु जो सावद्या वार्यों ने अपने पासस्थापनके प्रयोग अपनी क्रियायों के छिपाने को
और भोले लोकों को वहकाकर माल खाने को मन मानें गौड़े लिख धरे हैं निशीथ भाष्यवत् उन्हें विद्वान् कभी नहीं प्रमाण करेंगे।