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( १२५ ) अनेक अर्थ होते हैं यथा बलयति बलं करोति देह पुष्टौ यौगिकार्थश्चेति'क्योंकि दक्षिण देशा दिकोंमें विशेष करके बलवृद्धिकेलिये औषधियों केतेल मल मलके उवटना (पीठी) करकेस्नान करते हैं तथापि सूत्रों में सम्बंधार्थ है क्योंकि सूत्रों में जहां स्नान की विधि का संक्षेप से __ कथन आता है वहां ही कयबलिकम्मा शब्द
आताहै और जहां स्नानकी विधिकापूराकथन लिखा है वहां वलि कम्मापाठ नहीं आता है तथा बलि, दान अर्थ में भी है, यथाशब्दकल्प द्रुम तृतीय काण्डे बलिः पुंबल्यते दीयते इति वलदाने तथा गृहस्थानां बलिरूप भूत यज्ञस्य प्रतिदिन कर्तव्य तथा तस्य विस्तृतिरुच्यते गृहस्थ से करने लायक पांच यज्ञोंमें से “भूत यज्ञ" बलिकर्म ततः कुर्य्यात्) यथा पञ्जाब