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( ११३ ) वंदना करे तो यों कहेगा कि तुमें राजा की तरह समझता हूं परंतु यों तो ना कहेगा कि तुमें नौकर की तरह समझता हूं ऐसे ही कोई मत पक्षी मूर्ति को तो कहभी देवे कि मैं मूर्ति को भगवान् की तरह मानता हूं इत्यादि।
(१९) पूर्वपक्षी-हमारे आत्मारामजी अपने बनाये सम्यक्त्व शल्योद्धार में जिसका उलथा १९६० के साल विक्रमी, देशी भाषा में किया है पृष्ठ २४३ पंक्ति ४ में लिखते हैं कि किसी कोष में भी चैत्य शब्द का अर्थ साधु (यति) नहीं करा है, और तीर्थंकर भी नहीं करा है कोषोमें तो (चैत्यं जिनौक स्तबिंब च्यैत्यो जिन सभा तरुः) अर्थात् जिन मंदिर और जिन प्रतिमा को चैत्य कहाहै और चौतरे वंध बृक्ष का नाम चैत्य कहाहै इनके उपरान्त और