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( ११४ ) किसी वस्तु का नाम चैत्य नहीं कहा है, · उत्तरपक्षी-देखो कानी हथनी की तरह एक तरफी वेल खाने वत् अपने माने कोष और अपने मन माने चैत्य शब्द के तीन अर्थप्रमाण कर लिये और चैत्य शब्द के ज्ञानादि अर्थों की नास्ति करदी परन्तु चैत्य शब्द के जैन सूत्र में तथा शब्द शास्त्रों में बहुत अर्थ (नाम) चले हैं इन में से हम अब शास्त्रानुसार कई ज्ञाना - दि नाम लिख दिखाते हैं।
ज्ञानार्थस्य चैत्य शब्दस्य व्युत्पत्ति र्बभण्यते चिती संज्ञाने धातुः कवि कल्पद्रुम धातु पाठे तकारांतचकाराधिकारे ऽस्ति तथा हि चतेञ् याचे चिती ज्ञाने चित् कङ् च चिति क् स्मृतौ इत्यादि ईकारानुबंधात्काक्य योरिण निषेधार्थः इतिपश्चात् चित् इतिस्थिते