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( १०२ ) भगवत के पूर्णज्ञान की स्तुतिकी कही हैक्यों कि ठोणांग जी सूत्र में, तथा जीवाभिगम सूत्र में नंदीश्वरद्वीप का तथा पर्वतों की रचना का विशेष वर्णन भगवंत ने किया है और वहां शाश्वतीमूर्ति मंदिरोंका कथनभी है परन्तुवहां भी मूर्ति को पडिमा नाम से ही लिखा है यथा जिन पडिमा ऐसे है परन्तुजिन चेइय ऐसे नहीं और भगवतीजीमें जंघाचारण के अधिकार में (चेइयाइं बदइ) ऐसापाठ है इस से निश्चय हुआकि जंघाचारण ने मूर्ति नहीं पूजी अर्थात् मूर्ति को वंदना नमस्कार नहीं करी यदि करी होती तो ऐसा पाठ होता कि (जिन पडिमाओ वंदइ नमसइता) तिससे सिद्ध हुआकि जंघाचारण मुनि ने (चेइयाइं वंदइ ) इस पाठ से पूर्वोक्त भगवत के ज्ञान की स्तुति करी अर्थात्