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धन्य है केवल ज्ञान की शक्ति जिस में सर्व पदार्थ प्रत्यक्ष हैं यथा सूत्र :
जंघाचारस्सणं भंते तिरियं केवइए गइ विसएपणत्ता गोयमा सेणं इतो एगणं उप्पाणं रुअगवरे दीवे समोसरणं करेइ करइत्ता तह चेइ याई वंदइ वंद इत्ता ततो पडि नियत माणे विएणं उप्याएणं णंदीसरे दीवे समोसरण करइ तहं चेझ्याई वंदइ वंदइत्ता इहमागच्छइ इह चेइ याई वंदइ इत्यादि। अर्थ :
गोतमजी पछते भये हे भगवन् जंघाचारण मुनिका. तिरछी गतिका विषय कितना है गोतम वह मुनि एक पहिली छाल में (कुदमें) रुचक वर दीपपर समोसरणकरता है (विश्राम करता है। तहां (चेइय बन्द) अर्थात् पूर्वोक्त