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( १०३ ) धन्य है केवल ज्ञान की शक्ति जिस में सर्व पदार्थ प्रत्यक्ष हैं यथा सूत्र :
जंघाचारस्सणं भंते तिरियं केवइए गइ विसएपणत्ता गोयमा सेणं इतो एगेणं उप्पाणं रुअगवरे दीवे समोसरणं करेइ करइत्ता तहं चेड़ याइं वंदइ वंद इत्ता ततो पडि नियत माणे विएणं उप्याएणं गंदीसरे दीवे समोसरण करइ तहं चेइयाइं वंदइ वंदइत्ता इहमागच्छ। इह चेइ याई वंदइ इत्यादि। अर्थ :
___ गोतमजी पूछते भये हे भगवन् जंघाचारण मुनिका, तिरछी गतिका विषय कितना है गोतम वह मुनि एक पहिली छाल में (कूढमें) रुचक वर दीपपर समोसरणकरता है (विश्राम करता है। तहां (इय बदइ) अर्थात् पूर्वोक्त