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भगवत के पूर्णज्ञान की स्तुतिकी कही है क्यों कि ठाणांग जी सूत्र में, तथा जीवाभिगम सूत्र में नंदीश्वरद्वीप का तथा पर्वतों की रचना का विशेष वर्णन भगवंत ने किया है और वहां शाश्वती मूर्ति मंदिरोंका कथनभी है परन्तु वहां भी मूर्ति को पडिमा नाम से ही लिखा है यथा जिन पडिमा ऐसे हैं परन्तुजिन चेइय ऐसे नहीं और भगवतीजी में जंघाचारण के अधिकार में ( चेइयाई बदइ) ऐसा पाठ है इस से निश्चय हुआ कि जंघाचारण ने मूर्ति नहीं पूजी अर्थात मूर्ति को वंदना नमस्कार नहीं करी यदि करी होती तो ऐसा पाठ होता कि (जिन पडिमाओ वंदइ नमसड़ता ) तिससे सिद्ध हुआ कि जंघा - चारण मुनि ने ( चेइयाइं वंदइ ) इस पाठ से पूर्वोक्त भगवत के ज्ञान की स्तुति करी अर्थात्