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भाता है, जिस का पूर्वपक्षी पाषाणोपासक जल्दी ढोआ (भेट) ले मिलते हैं कि देखो जंघा चारण २ मुनियों ने मर्ति को नमस्कार की है परन्तु वहां मुनियों के जाने का और मूर्ति के पजने का पाठ नहीं है अर्थात् अमुक मुनि गया अपितु वहां तो विद्या की शक्तिके विषय में गोतमजीका प्रश्न है और महावीर जी का उत्तर है।
(१७) पूर्वपक्षी-यहतो प्रश्नहमारा ही है कि जंघाचारग विद्याचारण मुनियों ने मूर्ति पूजी हे यह पाठ तो खुलासा है,भगवती जी सूत्र में __उत्तरपक्षी-अरे भोले भाई उस पाठ में तो
मूर्ति पूजा की गंधि (मुस्क) भी नहीं है और न किसी जैन मुनि ने किली जड़ मूर्ति को वंदना नमस्कार करी कही हे वहां तो पूर्वोक्तभाव से