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( १.० ) चैत्यचैत्यानि(चेइयाणि)शब्दका अर्थ ज्ञान ज्ञान वान्,यति,आदि सिद्धहोताहै,मूर्ति(प्रतिमा) नहीं क्योंकि जहांमूर्ति का कथन आवेगा वहांप्रतिमा शब्द होगा,सो तुम अबअच्छी तरह आंखेंखोल के द्रौपदी जी के पाठ को देखो कि यहां द्रौपदी जीने मूर्ति पूजी है तो (प्रतिमा ) पाठ आया है (जिनपडिमाउ अचेइ ) यदि तुम्हारे कहने के बमूजव चेइय शब्द का अर्थमूर्ति होता अर्थात् मूर्ति को चैत्य कहते, तो यहां ऐसा पाठ होता कि ( जिन चेइय अच्चेइ ) सो है नहीं यदि कहीं टीका टव्बो कारों ने चेइय शब्द का अर्थ प्रतिमा लिखाभीहै तो मूर्ति पूजक पूर्वाचार्योंने पूर्वोक्त पक्षपात से लिखा है क्योंकि इसी तरह जहां भगवती शतक २० मा उद्देशा ९ मा में जंघा चारण विद्या चारण की शक्ति का कथन