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( ८६ ) पूर्वपक्षी-यदि तुम लोकों ने ही पक्ष से यह पाठ निकाल दिया हो तो क्या साबूती।
उत्तरपक्षी-साबूती यह है कि प्रमाणीक सूत्रोंमें और कहीं पूर्वोक्त श्रावक श्राविकाओंके धर्म प्रवृत्ति के अधिकार में तीर्थंकरदेवकी मूर्ति पूजा का पूर्वोक्त पाठ नहीं आया इसकारण से सिद्ध हुआ कि द्रौपदी ने भी धर्मपक्ष में मूर्ति नहीं पजी १ और इस के सिवाय दुसरी साबूती यह है कि तुम्हारे माने हुये पाठ में सुरयाभ देव की उपमा दी है कि जैसे सुरयाभ देव ने पूजा करी ऐसे द्रौपदी ने करी परन्तु स्त्री को स्त्री की अर्थात् श्राविका को श्राविका की उपमा नदी यथा अमुका श्राविका अर्थात् सुलसा श्राविका रेवती श्राविका ने जैसे मूर्तिपूजा करी ऐसे द्रौपदी ने मूर्ति पूजा करी