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संस्कृत के जैन वैयाकरण एक मूल्याकन ६३
भाषा नही दी गयी है | इसमे विभक्ति विधायक सूत्रो का सीधे ढग से ही कथन किया गया है ।
१५ समास प्रारण शाकटायन मे समास प्रकरण के आरम्भ में ही बहुब्रीहि समास विधायक सूत्र का निर्देश किया गया है । इसके बाद कुछ तद्धित प्रत्यय आ गये हैं, जिनका उपयोग प्राय बहुव्रीहि समास मे होता है ।
बहुव्रीहि समास का प्रकरण समाप्त होते ही अव्ययीभाव समास का प्रकरण आरम्भ हो जाता है । यहा युद्ध वाच्य मे ग्रहण और प्रहरण अर्थ मे केशाकेशि और दण्डादण्डि को शाकटायन ने अव्ययीभाव समास माना है । शाकटायन के अनुसार अव्ययीभाव के प्रधान दो भेद हैं (१) अन्यपदार्थप्रधान, (२) उत्तरपदार्थप्रधान । इसलिए "केकाश्च केशाश्च परस्परस्य ग्रहण यस्मिन् युद्धे", इस प्रकार के साध्य प्रयोग विग्रह वाक्य मे अन्य पदार्थ प्रधान अव्ययीभाव समास है । पाणिनि ने जिन प्रयोगो को बहुव्रीहि समास मे गिनाया है शाकटायन ने उनमे से कतिपय अव्ययीभाव समास मे परिगणित किये है |
समास
१६ तद्धित, कृदन्त और लिडन्त - शाकटायन मे तद्धित, कृदन्त और तिडन्त प्रकरण प्राय पाणिनि के समान है । विशेषता यह है कि शाकटायन का प्रत्यय विधान और प्रत्ययो के अर्थ अपनी मौलिकता लिये हुए है ।
શાજ્યાયન અમોષવૃત્તિ
शाकटायन पर अमोवृत्ति नाम की एक बृहद् वृत्ति है । यह अठारह हजार श्लोक परिमाण है ।
अमोधवृत्ति शाकटायन की स्वोपज्ञवृत्ति है । 'अमोधवृत्ति' इस श्लिष्ट ५५ के द्वारा शाकटायन ने एक ओर अन्य वृत्तियों की अपेक्षा अपनी वृत्ति की महनीयता प्रतिपादित की है, दूसरी ओर अपने समकालीन राष्ट्रकूट राजा अमोघवर्ष प्रथम का आदरपूर्ण स्मरण किया है ।
शब्दानुशासन के सक्षिप्तसूत्रो मे जो बाते कहने से रह गयी थी, उनकी भी पूर्ति इस वृत्ति द्वारा कर दी गयी है ।
मुनित्रशाभ्युदय काव्य के रचयिता ने लिखा है कि "उस मुनि ( शाकटायन ) ने अपने बुद्धिरूप मंदराचल से श्रुतरूप समुद्र का मयन कर यश के साथ व्याकरण रूप उत्तम अमृत निकाला । शाकयाटन ने उत्कृष्ट शब्दानुशासन को बना लेने के बाद अमोधवृत्ति नाम की टीका, जिसे बडी शाकटायन कहते है, बनायी, जिसका परिमाण १८०० श्लोक है । जगत्प्रसिद्ध शाकटायन मुनि ने व्याकरण के सूत्र और साथ ही पूरी वृत्ति भी बना कर एक प्रकार का पुण्य संपादन किया । एक बार अविद्धकर्ण सिद्धान्त चक्रवर्ती पद्मनन्दी ने मुनियों के मध्य-पूजित शाकटायन को मन्दर 'पर्वत के समान धीर विशेषण से विभूपित किया । यक्ष वर्मा ने अपनी चिन्तामणि