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संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
शाकटायन के प्रत्याहार सूत्रो की दूसरी विशेषता यह है कि उनमे 'लण्' सूत्र को स्थान नही दिया और लवर्ण को पूर्व सूत्र मे ही शामिल कर लिया गया है । इसमे सभी वर्णो के प्रथम अक्षरो के क्रम से अलग-अलग प्रत्याहार सूत्र दिये गये है । मात्र वर्णो के प्रथम वर्णों के ग्रहण के लिए दो सूत्र दिये गये हैं । पाणिनीय, वर्ण समाम्नाय की तरह शाकटायन मे भी हकार दो बार आया है। पाणिनीय व्याकरण मे ४१, ४३ या ४४ प्रत्याहार रूप मिलते है किन्तु शाकटायन मे मात्र ३८ प्रत्याहार ही उपलब्ध है ।
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१० शाकटायन ने 'न १|१|७० ' सूत्र द्वारा विराम मे सन्धि कार्य का निषेध किया है तथा अविराम सन्धि का विधान मानकर 'न' सूत्र को अधिकार सूत्र बताया है । अच् सन्धि के आरम्भ मे सर्वप्रथम अयादि सन्धि का विधान किया है | इसके बाद "अस्त्रे १|१|७३ || ” द्वारा यण् सन्धि का प्रतिपादन किया है । इसी प्रसग मे "ह्रस्वो वा पदे १|१|७४" सूत्र दिया गया है । इसके द्वारा "दधी +अत्र = दधियत, दव्यत, नदी + एषा नदिएपा, नद्येपा रूप सिद्ध होते हैं । पाणिनि तस्व विधान का नियम नही है । यह शाकटायन की अपनी उद्भावना है ।
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शाकटायन ने प्रकृति भाव सन्धि को निषेध सन्वि कहा है । इस प्रकरण मे १।१।६६ से १।१।१०२ तक मात्र चार सूत्र है । पाणिनि की अपेक्षा इसमे नवीनता नही है फिर भी यह इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि इतने कम मूत्रो से शाकटायन ने अपना प्रयोजन साध लिया है ।
११. शाकटायन ने 'सम्राट्' शब्द की सिद्धि "सम्राट् १|१|११३" सूत्र द्वारा की है। इस सूत्र की वृत्ति मे लिखा है "समित्यस्य राजतो क्विवन्ते, उत्तरपदे परेनुस्वाराभारो निपात्यते ।" इससे स्पष्ट है कि शाकटायन ने मकार को निपातन से ही ग्रहण कर लिया है । यद्यपि इस सूत्र के पहले शाकटायन मे वैकल्पिक अनुस्वार का अनुशासन विद्यमान है तो भी उन्होने अनुस्वार के अभाव की बात नही कही । निपातन का अर्थ है अन्य विकार्य स्थितियो का अभाव । संभवतया इसी कारण शाकटायन ने हेम की तरह अनुस्वाराभाव कहने की आवश्यकता नही समझी ।
१२ शब्दसाधुत्व मे शाकटायन का दृष्टिकोण पाणिनि के समान ही है । उन्होंने एक शब्द को लेकर सातो विभक्तियों में उनके रूपो को सिद्ध करने की विधि बतायी है ।
१३ स्त्री प्रत्यय शाकटायन ने स्त्री-प्रत्यय प्रकरण मे स्त्री-प्रत्यान्त शब्दो को सिद्ध नहीं किया। जैसे दीर्घपुच्छी, दीर्घपुच्छा, कवरपुच्छी, मणिपुच्छी, अश्वकीति, मनसाकीति मदृश प्रयोगो का अभाव है | हेमचन्द्र ने इसके लिए स्वतन्त्र सूत्रो का विधान किया है।
१४ शाकटायन मे कारक सामान्य तथा कर्ता, कर्म, करण आदि की परि