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आचार्य श्री कालूगणी व्यक्तित्व एवं कृतित्व २३
प्राचीनता और नवीनता की देहलीज पर
आचार्य कोलूगणी उस समय अस्तित्व मे थे, जब हजार वर्ष की लम्बी परतत्रता के बाद हिन्दुस्तान स्वतन्त्रता की लडाई लड रहा था। महात्मा गांधी उस लडाई का नेतृत्व कर रहे थे। पुरानी धारणाए टूट रही थी, नई धारणाए स्थापित की जा रही थी। पुरानी परम्पराओ और सीमाओ का स्थान नई परम्पराए और सीमाए ले रही थी। उस सन्धिकाल मे कोई सर्वथा पुराना नही रहा था, और कोई भी सर्वथा नया नही हो पा रहा था। आचार्यवर नए विचारो के समर्थक थे, यह कहकर मैं अतिशयोक्ति करना नहीं चाहता। किन्तु यह अत्युक्ति भी नही होगी कि वे सन्धिकाल के अनुरूप प्राचीनता की मिट्टी मे नवीनता के वीज बो रहे थे। वे ययावत् स्थिति के पोषक नही थे। यथार्थ की स्वीकृति के लिए उनका मानस तैयार था । स० १९८४ का प्रसग है । आचार्यवर बीदासर मे विराज रहे थे । मानसिंह जी (मुर्शिदावाद, पश्चिम बगाल) दर्शन करने आए। उन्होने कहा महाराज श्री ! आप माधु-साध्वियो को बगाल प्रान्त मे क्यो नही भेजते ? आचार्यवर ने परम्परानुसारी उत्तर दिया वह अनार्य देश है । वहा हम लोग जा नही सकते । अपने कयन की पुष्टि के लिए आचार्यवर ने वृहत्कल्प का एक सूत्र उन्हे बताया, जिसमे मुनियो के विहार की सीमा बतलाई गई है। आचार्यवर ने कहा-इस सूत्र के अनुसार हम पूर्व मे अग-मगध, दक्षिण मे कौशाम्बी, पश्चिम मे थूणा और उत्तर मे कुणाल तक जा सकते है । यही आर्य क्षेत्र है। इससे आगे अनार्य क्षेत्र है। अत इस सीमा से आगे नही जा सकते। इससे आगे जाने पर ज्ञान, दर्शन और चारित्र की हानि होती है। मानसिंहजी बोले। महाराज श्री सीमा के बारे मे आपने जो कहा वह ठीक है किन्तु मैंने सुना है कि इस सीमा से आगे जहा ज्ञान, दर्शन और चारित्र की वृद्धि हो, वहा मुनि जा सकते हैं।
आचार्यवर ने वृहत्कल्प का टवा (भावानुवाद) देखा । उसमे उस्सपाति का अर्थ 'हानि होती है' किया था। उसके भाष्य और टीका मे इसका अर्थ 'वृद्धि होती है', किया था। आचार्यवर ने कहा वृद्धि का अर्थ ठीक है । उन्होने पृष्ठो मे 'हानि होती है' यह अर्थ कटवा दिया और उसके स्थान पर 'वृद्धि होती है' यह अर्थ लिखवा दिया। कुछ समय बाद आचार्यवर ने मुनि चौथमल जी से कहा टवा मे वह अर्थ किया हुआ था, जो अर्थ अब हमे पुन मान्य नही होगा, फिर भी वही कर दो । यद्यपि यह अर्थ सही नही है पर टवाकार द्वारा किया हुआ अर्थ हम कैसे बदल सकते हैं ? यह अर्थ अब हमे मान्य नहीं होगा, फिर भी हमे उसे बदलने का अधि