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२ : संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और को। की परम्परा
श्रीमोर प्रदेश के राणा का नाम था मोहिल । उनके पिता का नाम था राणा सुरजन । पिता और पुत्र मे अनबन हो गई। मोहिल ने नये राज्य की खोज मे दो गुप्तचरो को भेजा। द्रोणपुर की समतल भूमि पर अधिकार करना सरल है, गुप्तचरो से यह सूचना पा मोहिल ने १७ हजार सैनिको के साथ द्रोणपुर पर अचानक आक्रमण कर दिया । बागडियो के पास ५ हजार सैनिक थे, वे लडाई मे पराजित हो गए । द्रोणपुर पर मोहिल का अधिकार हो गया। मोहिल का शासन होने पर उस प्रदेश का नाम मोहिलवाटी हो गया। वि० स० १५३१ तक मोहिलो ने द्रोणपुर पर शासन किया।
वि० सं० १५२३ मे राठौड नरेश जोधा ने मोहिलो के राज्य को हथिया लिया। ४-५ महीनो के वाद मोहिलो ने फिर उनसे छीन लिया। छुट-पुट लडाइया होती रही । आखिर वि० स० १५३१ मे राठौड बीदा ने उम पर अपना स्थायी अधिकार कर लिया। पूज्य कालूगणी का जन्म हुआ, तब छापर बीकानेर राज्य की सीमा में था।
जन्म
वि० स० १६३३ फाल्गुन शुक्ला द्वितीया का पुण्य दिन । शुभ मुहूर्त और शुभ वेला । एक शिशु का जन्म हुआ। पिता का नाम भूलचन्दजी और माता का नाम छोगाजी । ओसवाल वश और कोठारी जाति।
मूलचन्दजी पहले ढढेरू गाव मे रहते थे। वहा के ठाकुर से अनबन हो गई। इसलिए वे सं० १९१८ मे छापर मे वस गए। हो सकता है कि एक महान् आत्मा को जन्म देने के लिए उसके उपयुक्त भूमि का चुनाव किया हो। अज्ञात मे कुछ ऐसा घटित होता है कि ज्ञात घटना उसकी व्याख्या नहीं दे सकती।
नाम-रूप
जन्म-राशि के अनुसार शिशु का नाम शोभाचन्द रखा गया। उनके परिवार मे 'काला-भैरू' की मान्यता थी। इसलिए माता-पिता और परिवार के लोग उन्हे 'काल' नाम से मनोवित करने लगे। उनका प्रसिद्ध नाम यही है। वह कालू नाम शैशव मे माता को तृप्ति देता था। मुनि-जीवन मे वह मघवागणी को तृप्ति देने लगा। आचार्य-जीवन मे यह नाम लाखो यद्धालुओ के लिए आस्था का केन्द्र बन गया। यह नाम तेराप य के गौरव का प्रतीक है। शिशु का वर्ण श्याम, छरहरा वदन पुडोल आकृति और शरीर सांग-सुन्दर था।
शव
निशु कालू का जन्म हुआ, तब छोगाजी की अवस्था बत्तीस वर्ष की थी।