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आचार्य श्री पालुगणी : व्यक्तित्व
પર્વ તત્વ
युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी
जन्मभूमि
गोपालपुरा की पहाडिया लाडणू, सुजानगढ़, छापर, चाडवास और बीदासर के मध्य मे स्थित है। उनके पास एक ताल है, जो मीलो मे फैला हुआ है और वह काले हिरनो के लिए प्रसिद्ध है। उसमे विशाल मात्रा मे नमक का उत्पादन हो रहा है।
पहाडियो की शृखला मे आठ पहाडिया हैं। उनके नाम इस प्रकार है
१ काली डूगरी, २ विनायक डूगरी, ३ सुलेर की डूगरी, ४ भेसास की डूगरी, ५. देवी डूगरी, ६ कोढणी डूगरी, ७ चरला की डूगरी, ८ विमर की डूगरी।
महाभारत काल मे यह स्थान छापर के नाम से प्रसिद्ध था। आचार्य भारद्वाज (द्रोणाचार्य के पिता) आचार्यवास में रहते थे। उस युग का आचार्यवास ही वर्तमान का चाडवास है।
द्रोणाचार्य आजीविका की खोज मे पूर्व की ओर जा रहे थे। पाडवो और कौरवो से सहमा मिलन हो गया । वे उनके गुरु बन गए । उन्होने राजकुमारों को धनुविद्या मे प्रशिक्षित कर दिया। धृतराष्ट्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा के रूप मे 'छापर' प्रदेश दिया। द्रोणाचार्य ने काली डूगरी के पास द्रोणपुर वसाया। छापर प्रदेश मे १४४० गाव थे। तीन मुख्यालय थे १ द्रोणपुर-छापर, २ लाडण, ३ किरातावाटी।
द्रोणाचार्य के बाद इस प्रदेश पर शिशुपाल के पौत्र पवार डाहलिया का अधिकार हो गया । नागौर पर वागडियो का अधिकार था । डाहलियो (चन्देलो) और बागडियो मे विरोध उभर आया। बागडियो ने डाहलियो को परास्त कर छापर प्रदेश पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया। वि० सं० ६३१ तक यह प्रदेश बागडियो के प्रभुत्व मे रहा।