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संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
२ पाणिनि दिवादिभ्यश्यन् करते हे और शाकटायन यहाँ पर केवल श्य का विधान अनुवन्ध विनिर्मुक्त का कर रहे है ।
३ पाणिनि जहाँ चिण् प्रत्यय करते हैं, वहाँ शाकटायन जि प्रत्यय करते हैं । ४ अणु शब्द की सिद्धि के लिये "धान्ये नित्" यह सूत्र है । यहाँ नित् करण केवल स्वर के विधान के लिये है ।
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५ शाकटायन ने सम्प्रसारण सज्ञा नही की है किन्तु उणादि सूत्र मे सम्प्रसारण सज्ञा की गई है जैसे "रुहे वृद्धिएच, "स्पन्दे सम्प्रसारण धश्च” सिन्धु ।
६ शाकटायन ने टिसज्ञा नही की है किन्तु उणादि मे टिसना का उल्लेख आता है । यथा "मृजेष्टिलोपश्च" मलम् ।
७ पित् प्रत्यय का पित्व प्रयुक्त डीप् करना शाकटायन में नही देखा जाता किन्तु उणादि मे "कृशवृञ्चतिभ्य वरच्” प्रत्यय करके डीप् की सभावना स्पष्ट की गई है ।
इसके अतिरिक्त यह बात भी ध्यान देने की है कि यदि जैनाचार्य शाकटायन उणादिसूत्रो के रचयिता होते तो अपने व्याकरण मे केवल मात्र एक सूत्र 'उणादय का उल्लेख क्यों करते ? इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पाणिति सूत्र "अप्नृन् तृच्स्वसृनप्तृ" इत्यादि मे पठित नप्तृ आदि के ग्रहण से यह ज्ञापन किया जाता है उणादि निष्पन्न तृन् तृच् प्रत्ययान्त शब्दों की उपधा को दीर्घ हो तो केवल नप्तृ आदि शब्दों की उपधा को हो, अन्य की उपधा को न हो । उणादि सूत्र "नप्तृनेष्टृत्वष्टृ इत्यादि" (२५२) से नप्तृ आदि शब्दों की सिद्धि की जाती है । વિ ા જી નવમી યા વશમી શતાબ્વી મે હોને વાલે શાળટાયન હાવિ સૂત્રો के रचयिता होते तो पाणिनि के सूत्र घटक शब्द अपनी उणादि निष्पन्नता के आधार पर ज्ञापन किस प्रकार करते ? क्या परवर्ती सूत्रो को ध्यानस्थ करके पाणिनि ने सूत्रो का निर्माण किया था ?
સનિયે પ્રજિત શાČાયન વ્યારણ પાણિનિ પૂર્વવર્તી શાČાયન વી રત્નના है और वे ही उणादि सूत्रो के रचयिता हैं 'यह बात बुद्धिगम्य नहीं होती । पूर्वप्रदर्शित अनुवन्ध सम्बन्धी सात बिन्दुओ के आधार पर यह निश्चय किया जा चुका है कि प्रचलित शाकटयन व्याकरण का उणादि सूत्रो से कोई सम्बन्ध नही है ।
सिद्धान्तकौमुदी बालमनोरमा टीकाकार वासुदेव दीक्षित का कहना है कि उणादिसूत्र शाकटायन प्रणीत है न कि पाणिनि प्रणीत । “उणादयो बहुलम्” इस સુન્ન के भास्य म कहा गया है "नाम च धातुजमाह निरुक्ते व्याकरणे शकटस्य च तोकम्” अर्थात् निरुक्तकार और शाकटायन ने कहा है कि सारे शब्द धातु से ही वनते हैं । यहाँ शाकटायन का नामोल्लेख तथा उनके द्वारा सारे शब्दो को धातुज कहने से स्पष्ट हो जाता है कि उणादि सूत्र शाकटायन प्रणीत है । उणादि सूत्रो का
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