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अध्याय
अध्याय
चरण
अध्याय
चरण १
भिक्षुशब्दानुशासन एक परिशीलन . १४७ सूत्र अध्याय परण सूत्र १४२ ८ १
१४३ १३४८
२ १२२८३ ११७ ११४८
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३७५१
३७५१ सूत्रो की टिप्पण सहित वृहद् वृत्ति की पहली प्रतिलिपि मुनिश्री चोयमलजी और सगतमलजी ने लिखी थी। फिर उसमे इतने काट-छाट हुए कि वह प्रति पढने मे दुरूह हो गई। फिर स्पष्ट रूप मे प्रथम हस्त प्रतिलिपि मुनिश्री चौथमलजी ने स्वयं लिखी। विक्रम सवत् १९८६ कार्तिक शुक्ला चतुर्दशी शनिवार को सरदारशहर मे वह प्रति पूर्ण हुई। वह प्रति २६१ पत्रो मे है । प्रत्येक पत्र दोनो ओर लिखा गया है। प्रत्येक पत्र मे ३८ पक्तिया हैं व प्रत्येक पक्ति मे ५६ से ६० तक अक्षर हैं। इस नाथ का परिमाण लगभग १८ हजार श्लोक हैं।
इसकी दूसरी प्रति मुनिश्री केवलचन्दजी ने लिखी। तीसरी प्रतिलिपि मुनि सगतमलजी ने लिखी।
भिक्षुशब्दानुशासन लधुवृत्ति
भिक्षुशब्दानुशासन की लघुवृत्ति लिखने का कार्य मुनि तुलसीरामजी ने प्रारम्भ किया था। कुछ ही समय बाद आचार्य पद का भार सभालने से अन्य कार्यों में समय अधिक लगने लगा और वह वृत्ति लिखने का कार्य स्थगित हो गया। फिर इस कार्य को मुनि युगल श्री धनराजजी और श्री पन्दनमलजी दोनो ने प्रारम्भ कर विक्रम संवत् १९६५ मे पूर्ण किया। प्रशस्ति श्लोक
सच्छन्दवारानिधिपारदृश्वभि , श्रीचोथमल्लपिभिरातकौशली। सहोदरी केवलचन्द्रनन्दनी, नाम्ना प्रसिद्धौ धनराज-चन्दनी ॥८॥ ताभ्या निदेशाद् गणनायकाना, विनिर्मिता वृत्तिरिय सुखेन । अक्षाङ्क निध्यात्ममिते सुवर्षे,
बोधाय भूयाल्लघु पाठकानाम् ॥६॥ यह लघुवृत्ति ७६ हस्तलिखित पत्रो मे पूर्ण हुई है। प्रत्येक पन के दोनो ओर