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१४६ : संस्कृत-प्राकृत व्याकरण और कोश की परम्परा
वृहद्वृत्तिकार का मगलाचार इस प्रकार है થાપિપલ્તવતનો પિતવસ્સવોપિ, प्राप्नोति लोकविरल कविवल्लमत्वम् । तस्या गुणीन्द्रगणवन्धपदोत्पलाया, वाण्या वरेण्यशरण प्रणिपधमानः ।।१।। श्रीचोयमल्लमुनिनिमितरम्य भिक्षुगदानुशासनमिद विवृणोमि वृत्त्या। हृप्यन्तु यल्ललितमूत्रम निपीय, भृङ्गा मरन्दमिव विजजनानगण्या ।।२।। यंपा नितान्तनिहितं करुणाकटाक्ष - नव्योधमो भवति संस्कृतशास्त्र । तपा गणाधिपतिकालुमुनीश्वराणा,
जीयापिर चिरस-परणाजरोपि ॥३।। श्रीमज्जनश्वेताम्बरत रापयाभिवसंप्रदायाद्यपुत्पभिक्षुगणिराज सबन्धिसमानुशासन भिक्षुशब्दानुशासनम् ।
ग्रथका महामहिम्नामादिगुरूणा श्री भिक्षूणामेव तत्कृपयेव जायमानत्वादभिवानेन प्रकाश्यते ।।
भिक्षुशब्दानुशासन के ८ अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय मे चार चरण हैं । आठ अव्याओ मे ३७५१ सूत्र हैं । उनका संख्याक्रम इस प्रकार है
अध्याय
करण
બેન્જાય
चरण
सूत्र
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