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अध्ययन की जी प्रेरणा उनसे समस्त साधु-साध्वियो को प्राप्त होती रही, वह नि - सन्देह विद्या-पथ पर अग्रसर होते अध्येताओ के लिए एक सबल सवल और पावन पायेय है। कितना अच्छा हो, आचार्य श्री कालूगणी के जीवन के इसी पक्ष को लेकर सस्कृत प्राकृत व्याकरण, मापा-विज्ञान तथा कोश वाड्मय पर एक अनुमधानपूर्ण स्मृति-ग्रन्य तैयार किया जाए।"
वास्तव मे आचार्य श्री के इस दिशा-दर्शन में गभीर चिन्तन अनुम्यूत था। इस विषय को लेकर मुनि श्री नयमल जी के मान्निध्य में परिचर्चाए चली। मुनि श्री ने एततिपयक स्मृति-ग्रन्थ की महत्ता एव उपयोगिता बताते हुए व्यक्त किया कि यदि ऐसा हो सका तो भारतीय विद्या (Indology) के क्षेत्र में एक महनीय कार्य होगा। यह एक ऐसा सन्दर्भ-ग्रन्य बन जाएगा, जिसका अनुसन्धित्सु विद्वान् सोत्साह उपयोग करेंगे।
मुनि श्री के मार्ग-दर्शन मे हमने स्मृति-ग्रन्य की एक परिकल्पना की। मस्कृत, प्राकृत व्याकरण, भापा-विज्ञान तथा कोश सबधी विषयो का चयन किया । इस संबंध मे विशेष रूप से यह चिन्तन रहा कि विभिन्न विशिष्ट विषयो पर उन-उन विशिष्ट विद्वानो से निवन्ध प्राप्त किए जाए, जो उन विषयो के गभीर अध्येता और गवेपयिता है । सस्कृत, प्राकृत आदि के क्षेत्र में कार्यरत रहने के कारण व विद्वानो से हमारा निकट का परिचय एवं सम्पर्क रहा है। हमने इस ग्रन्थ के सवध मे लिखने हेतु उन्हें निवेदन किया । यद्यपि जो विषय निर्धारित किए गए, वे इतने गम्भीर और गवेष्य थे कि उन पर लिखने के लिए पर्याप्त समयापेक्षी अध्ययन की आवश्यकता श्री पर फिर भी विद्वानो ने थोडे समय मे मी प्रचुर श्रम करके अपने शोधपूर्ण निवन्ध तैयार कर प्रेपित किए । हमारा प्रारम्भ से ही यह चिन्तन रहा है कि कलेवर मे सामग्री की बहुलता चाहे न रहे किन्तु गुणात्मकदृष्ट्या उममे ७.यता, गहनता तथा मूक्ष्मता हो । हमे मतोप है कि हमारा अभीप्सित सध रहा है तथा विश्वास है कि इन विषयो मे गहन अध्ययन करने वालो के लिए यह ग्रथ उपથો પ્રમાણિત હોમ |
विषय-वस्तु
भारतीय वाडमय मे व्याकरणशास्त्र का महत्त्व सर्वोपरि रहा है । आचार्य पाणिनि एव पतजलि आदि मनीपियो ने सस्कृत व्याकरणशास्त्र की जिस परम्परा को स्थापित एव पुष्ट किया था, उसका विकास जन परम्परा के वैयाकरणो-- जनेन्द्र, शाकटायन, हेमचन्द्र, मलय गिरि आदि के द्वारा हुआ है । उन्होने अपने-अपने ममय की शब्द-सम्पत्ति का संस्कार करने मे विशेष प्रयत्न किया है। जैन जीचार्यो ने संस्कृत के व्याकरण-गन्यो पर अनेक टीका लिखकर उन्हें सुगम ओर मुवोध बनाया है। इतना ही नहीं, अपितु प्राचीन व्याकरण प्रन्यो का परिमार्जन कर