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xiii श्री सोहनलालजी सिद्ध हेमशब्दानुशासन के अच्छे पाठी थे। उन्होंने वर्तमान संघनायक आचार्य श्री तुलसी के नाम पर सिद्धहेमशब्दानुशासन पर इस नवीन प्रक्रिया-ग्रथ की रचना की। मुनि श्री सोहनलालजी एक कविहृदय मनीषी थे। उन्होने व्याकरण जैसे नीरस तथा दुरूह विषय मे जो सरसता और मृदुता का अपादान किया है, वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।
इस प्रकार स्वनामधन्य आचार्य श्री कालूगणी से प्रारभ हुआ सस्कृत विद्या का अभियान निर्वाध गति से आगे बढता गया, प्रसार पाता गया। इसकी फल-निष्पत्ति का यथार्थ अकन विद्वानो को तव प्रतीत हुआ, जव आचार्य श्री तुलसी अपने अनेक श्रमण-श्रमणी-समुदाय सहित भारत मे सस्कृत के विशिष्ट केन्द्र पूना तथा वारा॥सी जैसे स्थानो मे गए। पूना मे भडारकर ओरिएटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, डेक्कन कॉलेज तिलक विद्यापीठ, संस्कृत वावधिनी सभा तथा वाराणसी मे वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, हिन्दू विश्वविद्यालय आदि सस्यानो मे अनेक कार्यक्रम आयोजित हुए, जिनमें आचार्य श्री के मेधावी अन्तेवासी मुनि नथमलजी के संस्कृतभाषण तथा आशुकवित्व से वहा के विद्वान आश्चर्यान्वित हो उठ । अनेक तटस्थ विद्वानो का तो यहा तक कहना रहा कि आचार्य तुलसी का धर्मसप वास्तव मे संस्कृत विद्या का एक जगम विश्वविद्यालय है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ की योजना
आचार्य श्री कालगणी की जन्म-शताब्दी का प्रसग आया। उस सन्दर्भ मे करणीय कार्यो पर चिन्तन चला । साहित्य सर्जन तया प्रकाशन का जब प्रश्न सामने आया तो आचार्यप्रवर की ओर से एक विशेष दिशा-सकेत इस प्रकार प्राप्त हुआ "आजकल अभिनन्दन ग्रन्थ तथा स्मृति ग्रन्थ तो बहुत अधिक निकल रहे हैं पर वे अधिकाशत व्यक्तिपरक या प्रशस्तिमूलक ही दृष्टिगोचर होते हैं, किसी महान पुरुष की स्मृति का अर्थ मैं यह लेता हूं कि उनके द्वारा जीवन मे जो महान् कार्य किये गए, उनमे से किसी एक महत्वपूर्ण पक्ष को लेकर उस पर ठोस और शोधपूर्ण सामग्री दी जाए, जो उस क्षेत्र में कार्य करने वाले तथा अग्रसर होने वाले अनुसन्धित्सु सुधी जनो के लिए एक प्रकाश-स्तभ का काम दे । आचार्य श्री कालूगणी के जीवन के अनेक ऐसे गरिमाशील पक्ष है, जिनसे आज भी हम प्रेरणा प्राप्त करते हुए अपने मे एक अभिनव शक्ति एव स्फूर्ति का संचार कर सकते हैं।
आचार्य श्री कालूगणी ने अपने जीवन मे अनेक महान कार्य किए। अपने श्रमण संघ मे सस्कृत, प्राकृत आदि प्राच्य विद्याओ के विकास मे जो सतत तत्परता और अध्यवसाय उन्होंने दिखाया, निश्चय ही वह स्वर्णाक्षरो मे लिखे जाने योग्य है। उनके सतत कर्मठ और उद्यमशील जीवन की स्मृति आज भी हम लोगो मे एक नई चेतना का जागरण करती है । सस्कृत, प्राकृत, व्याकरण, कोश आदि के गहन