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________________ विजवनमा । [१९ सन् १५०९६० में वीर नरसिंहके पथात् श्री कृष्णदेवाने नगरका शासन मार अपने कुशाहायोम किया था। हिन्दू और गुरुम्माम बादशाहोंमें इसकी तुलना नहीं की जा सकती। विदेशियों उष्णदेवकी भूरी भूरी प्रशंसा की है।' पनि उसे तप सुन्दा लिला था। बपि कृष्णदेवराय वयं वैष्णपमतका अनुयायी था, पर उसने भों और जैनोंको भी दान दिये थे। यह संस्कृत और तेलुगु भाषामोका विदून और कविया। उसके दरबार में बने कवि रहते थे, जो दिमान' कहे गये है। कृष्णदेवरायका पता विक्रमादित्यके समतुल्क माना जाता था। वह गजा मोजके नामसे अपनी विपारसिकता, न्यायपाणला मोर व्यवहारकुशताके काग्न प्रसिद्ध था। २१ वर्षकी युवा नपस्या गमसिंहासन पर बैटा था; परन्तु अपने बुद्धिकोशरसे गस्यपस्थाको मुह बनाने में ग सफल हुमा का। पहले उसने बार्षिक सुधार किया : तासात उसने संगठन करके सेनाको बान पौर युवाशक बनाया। सालु तिम्मने हष्णदेवकी विशेष सहायताकी थी। उसने दस हजार हाथियों, चौबीस बार इसबारों और एक बाल यादोंकी शक्तिशाली सेना तैयार की थी। इस विशाल सेनाको कर उसने एकेरी. मदुग मादि प्रान्तोंके शासकोंको परास्त करके में पूर्वग्न कर देने के लिये बाध्य किया। इस प्रकार केन्द्रीय शकिको ठीक करके वह वास्तविक समाट् बना। सन् १५१३ में उसने मोदीसकेगमा गणपति RAN R नाक्रमण किया गौर से पापीन कर दिया-उसने कर देना सीकर लिया ५१५
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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