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विजयनगर सांबायको इतिहाम।
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HIN। एक सकारकी भकीपर मोहित हो गया और उससे विवाह काना चाहा, परन्तु यह भकी इस कार्यसे समय नवी गौर भागकर बहमनी राज्यमें सी गई। इसी बहानेसे बहमनी नरेश फिरोजशाहने मुद्रा पर चढ़ाई कर दी। सात महमदखाने द्वापर अधिकार कर लिया। देवगयने परास्त होना मानों से सब काकी. जिसमें विजयनगर राज्यकी हानि विशेष हुई।
कापुरके जिले यवनोंको देदिये गये और संरूप द्रव्य-होग, मोती मुस्तानको देने पड़े। मुमहमानोंने दो हमार नाचनेवाले र और युवतियां भी मांगी एवं देवरायकी पुत्री विवाह करके हीर संतोगिन हुमा कहा जाता है । इमस दुशाका मूळ कारण देवरामन रागरंगमें फंसा हना बा। किन्तु उसके मन्त्री लक्ष्मीधरन उसका बहुत कुछ सुधार किया और राजव्यवस्थाको सुचारु रोतिसे चाल सखा बार दसरे रानमंत्री ने भी मज्पकी दशा सुधारनमें पर्याय भाग किया।
देवराय व जैनधर्म । .. इगाके कारण ही देवाय द्वारा मदिरों और विद्वानों को भूमि सानमें दीगई थी।' प्रवणबेळगोरके शिलालेख नं. १२८ (३३७) सकसं. १३३२ से स्पष्ट है कि देवाय प्रथमकी भीमादेवी नामक रानी नपर्मानुयायीं थीं। उनके गुरु नाभिनपचारुकीति पंडितापार्क थे। अपने गुरुके उपदेशसे भीगदेवीने मवमवेल्गो के मंगायीपनि मापक मंदिर सानिधनाव भगवानकी अधिकारी
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