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________________ ५.] संवि जैन इतिहास । निर्मावित जिनमंदिरके कि दान दिया। इस प्रकार. रिस्गको शासनकाल में भी जैनधर्म अपने पूर्व गौरवको प्राप्त करने में समान भा। श्राणवेगोरके शिलालेख न० १२६ (३२९) से हरिए द्वि० की मृत्यु मादपद कृष्णा दशमी सोमबार शक संवत् १३२६ (सन् १९०५) को हुई प्रमाणित है।' बुक दि० व देवराम प्रथम । सन् १४०११० के पश्चात् हरिहरका ज्येष्ठ पुत्र देवराव या विजयनगर साम्राज्यका माविकारी हुमा । किन्तु किन्ही विद्वानोंका यह भी मत है कि देवायस पडळे उसके भाई बुकगयद्वितीबन के दो वर्ष (सन् १४०४ से १५.६६०) गज्य किया। इसके पक्षात् देवराय प्रथमने सन १४०६ १० में सन् १४२२६० शासन किया था। बुकाय द्वितीय मुद्रबिदुरीको 'गुरुग-स्वि' नामक वैन मंदिरके लिये दान दिया था। सेनापति गप्पने चिंग पेटके जिलेके एक जैन मंदिके लिये नुब्रायके पुष्प निमित दान दिया था कि वह राजकुमार थे। साक्षतः दुक द्वितीय भी जैनोपा सदय हुये थे। देवगयका दैनिक जीवन । नुकायके गरुकालीन शासन के पश्चात् देवगव प्रथम शासनविकारी हुऐ। 46 रंगीको तबियतका शामक । सिना .१-घिसं०. भमकः पृ. १९३। २-११, पृ. ४६३-g. जय हिस्ट्री. भा. ११. ८९। ४-28., पृ. ४५. ५- ०, पृ.१.५ ।
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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