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________________ १०१२. सपके सब-सिस्ने विवर्मनी बनावास्तिको नाम दिया था। उसने कगिरिक और विको मी मलेयूर ग्राम भेंट किया था। रानी मीयादेवीकारण देखाव प्रथम बैन गुरुभोंकी मोर नास हुये थे; विसके कारक सनका बीवन मबार ही पक गया । जैनधर्मको उन्होंने कई समानकी दृष्टिसे देखा था। हुम्माकी भावती-पस्तिक शिमलने प्रगट है कि वर्द्धमान मुनिके प्रमुख शिष्य धर्म गुरु एक महान् मायाता पौर मुनियों एवं गवानों द्वारा संहा थे। उनके पालकमक गबाधिगम परमेश्वर सम्राट् देवराव (बम )के राबमुटसे प्रमायुक हुये थे। मत: मालम होता है कि रानी भीमादेवी बोर राममंत्री हिगाके प्रबलासे सम्राट् देवराय (पक्षम) का मन्तिम जीवन शांति और धर्ममय बन गया था। सन् १४२२६० में उनकी मृत्यु होगई थी। विजयराम । - देवरायके पश्चात् उनके पुत्र विनयापने कुछ कातक शासन सत्र संभाग था। उसने बहमनी नपाको वार्षिक कर देना बन्द कर दिया था, जिससे चिढ़कर सन् १९२३ ई० में महमदसान विजयनगर सचढ़ई कादीबी। हिंदू सेना इसबार भी मुमहमानोंका मुकाविण कर सकी। हिन्दुओंकी क्षति हुई और बहुतसे हिंदू, मुसम्मान पना दिये गये। इस दुर्गतिमें विजयने पहमखासे संधि की और RORIमदा किया और बहुत-सा बन बामदखांको दिन! विषय राज्य प्रभा दुसी ही। १ ०,११९, २-०, पृ. १२९, ३-०. १९९
SR No.010479
Book TitleSankshipta Jain Itihas Part 03 Khand 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages171
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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