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१२१] संवित बैन इतिहास । पंचपरमेष्टीकी एक मर्ति प्रतिष्ठित कराई थी।वही ही एक समय मापनंदि सिदान्तचक्रवर्ती भी हहे थे। उनके प्रिय शिष्य बोपण पौर उनकी पत्नी मकौव्वेने हा एक चौबीसी-ट्ट स्थापित किया या। सम्राट् कृष्णदेवरायके राज्यकाळमें सं० १५१३ शाके (१५२१ 1.) में भंडारी अप्परसय्यके पुत्र भंडारद तिम्मप्पटयने हिरियसिन्दोगि नामक प्रामका दान कोपण वीके लिये किया था।' ईस्वी मठारहवीं सदी में देवेन्द्रकीति भट्टारकके शिष्य पर्द्धमानदेयने वह छाया-पन्द्रनामस्वामीकी जिनमति निर्मापित कराई थी। इस प्रकार १८वीं शताब्दि तक कोपण जैनधर्म का केन्द रहा था। उपांड काकी विषमता और जैनगुरुगोंके गमावमें उसका हास हो गया।
कुप्पटर। - कुण्ट्ररकी प्रसिद्धि भी जैन केन्द्र के रूसमें १५ समय तक विशेष हो गई थी। यह पहले ब्रामणोंका केन्द्र था, किन्तु कदम्ब गनी मालदेवीके स्वंगसे यह जैनोंका भी प्रमुख स्थान हो गया। बैन मुनिगण यहां माकर रहते और धर्मोपदेश देकर हिंसा संस्कृतिको मागे बढ़ाते थे। चौदहवीं शताब्दिमें वहां श्रुतमुनि रहते थे। उनके. शिष्य देवचन्द्र एक प्रसिद्ध कवि थे. जिनकी प्रशंपा अच्छे २ कवीन्द्र करते थे। श्रुतमुनि भी साहित्य स्पना करते थे। सन् १३६५६.में इन्होंने ही संभवत: मल्लिगेण सूरिहत सज्जन वितपल्लमकी कर्नाटकी
वास्या किसी बी। ये देशीयगणसे सम्बन्धित थे। देवचन्द्रजीने . १-कोण, ०.५२-पा, पु. ११, -कोपण, पु. १., ४-कोपन, ...