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विजयनगरकी शासन व्यवस्था जैन धर्म [१२१
विजयनगर कालमें वह शैवमंदिर बना किया गया। इस घटनासे कोपण पर शैवोंका प्रभाव व्यक्त होता है। प्राचीन काकी सभ्ह कोपण एक मात्र जैनतीर्थ और जैन सांस्कृतिक केन्द्र तब न रहा। फिर मी बडी जैनका प्राबल्य था। इस समयके प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री बादी विद्यानन्दजीने अन्य स्थानोंके अतिरिक्त कोपण सीमें भी बड़े २ जैन उत्सव रचाये थे और अपूर्व धर्म प्रभावना की बी । जैन व्यापारी और भेष्टी निरन्तर इस तीर्थ की भी वृद्धि करने में कमे हुये थे और भी वादी विद्यानन्द, श्री माषनन्दि एवं म० माष चंद्र
श जैनाचार्य वहांसे सदैव धर्मामृत बरसा और हिंसा संस्कृतिका प्रसार किया करते थे । सन् १४०० में सकल-कला-प्रवीण चौर श्री शुभचंद्रदेव के प्रमुख शिष्य चन्द्रकी र्तिदेवने वहाँ चन्द्रममजिनकी 'प्रतिमा इस माबसे निर्माण कराई थी कि वह उनकी निधि पर बिराजमान की जावेगी ।' सचमुच श्रावकगण इस तीर्थ पर भार साधुजनों की संगतिमें धर्म सेवन करते थे और उनके निकट तरण और वृतोद्यापन करके बात्महित साधते थे। ऐसे ही एक समय अब कोपण में मुकसंघ देशीयगण पुस्तकगच्छ जलेश्वर शाखाके नाचार्य माधवचन्द्र भट्टारक विराजमान थे तब उनके निकट इमवर्गे नामक पाटनगर के कुलाग्रि - सेनबोब अधिकारी देवष्ण माये। देवष्ण नक • जयके सुपुत्र धर्मात्मा श्रावक थे। म० मानवचंद्र उनके गुरु थे । उन्होंने गुरूसे दो (१) सिद्धचक्र और (२) मुख्य कमी नामक ग्रहण करके पान किये थे। अब उन लोंका उपाय करके उन्होंने
१. मे० १० १९८-१९९०
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