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१३.] संमिशन इतिहास । चंदनाके किये माना उस तीर्थक महल और यात्रियोंकी तीकिकी घोतक है। सन् १९९० में भी मारवाइसे मट्टारक नमचंद्रके किअमबर्मरुचि और ब्रम गुणसागर पंडित श्रवणवेल्गोको बनाने गाचे थे।
सन् १५०० में प्रवणबेल्गो के मठाधीश श्री पंडितदेह प्रयास गोम्मटेश्वरकी विशाकमर्तिका महामस्तकाभिषेक उत्सव समारोह मनाया गया था उस समय स्वयं गुरुजीने गौर बेगुरुना के नाम गोड तथा मुतग होमेनहालक गवुडगरने मठ एवं मझायो-पस्तिके लिये दान दिये थे। सारांश यह कि भाणवेल्गोक उस समय सांस्कृतिक सम्पर्कका केन्द्र बना हुवा था। तर भोर दक्षिण-दोनों ही देशोंके जैनी ही बाते और पास्पर मिस्ते जुब्ते थे।'
कोपण तीर्थ। अषण वेल्गोके उपरांत दक्षिण भारतमें दूसरा पान तीर्थ कोपण का यह पाठकों को पहले ही बसाया मा चुका है। विजयनगर सामाज्य-काळ मी कोपणका पार्मिक और सांस्कृतिक मास क्षेखनीय हावा। इस मौर्यकालीन तीर्थकी महतोगों के मन पड़ी हुई थी। विजयनगर समाट कृष्णदेवरायके समयमें कोय राज्य-सीमा मानी जाती थी। उससमय कोषपके आसक सिम्ममय नाये। वह केशवोपासक थे। उन्होंने सन् १५२१३ कोपणके
सेवा मंदिरको दान दिया । मंदिर मू: मंदिर स्योंकि इसकी दीपोर बबीबी जैन पस्किो म
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